वार्ता में उठा था मुद्दा
गत दिनों
राजस्थान शिक्षा विभाग की शिक्षक संगठनों के साथ वार्ता हुई थी। इसमें भी सम्मेलनों में कम उपस्थिति का मुद्दा उठा था। नए फरमान से अब उन शिक्षकों के सामने परेशानी खड़ी हो गई हैं, जो 2 दिन का अवकाश मनाते थे। सरकार द्वारा शैक्षिक सम्मेलनों पर नजर रखने के लिए वीडियोग्राफी के लिए डीईओ को अधिकृत करने के निर्णय को लेकर विभिन्न शिक्षक संगठनों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
पहले और अब….
पूर्व में उपस्थिति की अनिवार्यता के आधार पर प्रांत स्तरीय शैक्षिक सम्मेलन में 20 से 30 हजार शिक्षक सहभागिता निभाते थे। विभाग द्वारा सम्मेलन में उपस्थिति की अनिवार्यता को समाप्त करने के बाद शिक्षकों की उपस्थिति नगण्य होती गई। मोटे-मोटे अनुमान के मुताबिक प्रदेश में फिलहाल 60 से अधिक शिक्षक संगठन है। पर, इनमें सक्रिय रुप से एक दर्जन ही शिक्षक संगठन होंगे और उनेक द्वारा ही प्रांत स्तरीय शैक्षिक सम्मेलन हो रहे हैं और उन सभी संगठनों में सहभागिता देखी जाए, तो पांच से सात हजार भी बमुश्किल रहती है। जबकि, प्रदेश में शिक्षकों की संख्या चार लाख से अधिक है।
सम्मेलन का अर्थ छुट्टी
विभागीय जानकारों का कहना है कि शिक्षक सम्मेलन चाहे जिला स्तर हो या राज्य स्तर के इन चार दिनों को अधिकांश शिक्षक अघोषित छुट्टी ही मानते हैं। शिक्षक संगठनों के पदाधिकारी एवं सक्रिय सदस्य ही इन सम्मेलनों में सहभागिता निभाते हैं। इनमें भी पहले दिन ही उपस्थिति ठीक-ठाक रहती है। दूसरे दिन तो अधिकांश संगठन बंद कमरे में बैठक कर इतिश्री कर लेते हैं। ऐसे में सरकार इन सम्मेलनों की वीडियोग्राफी करवाकर धरातलीय टोह लेने जा रही है।