रोग और उपचार

छोटे बच्चों को मनोरोगी बना देती हैं ये बातें, जानें इनके बारे में

जब परिजन या माता-पिता बच्चे को किसी भावनाहीन या निर्जीव वस्तु की तरह ट्रीट करते हैं तो वह इस मनोरोग से ग्रसित हो जाता है।

Dec 25, 2018 / 04:31 pm

विकास गुप्ता

जब परिजन या माता-पिता बच्चे को किसी भावनाहीन या निर्जीव वस्तु की तरह ट्रीट करते हैं तो वह इस मनोरोग से ग्रसित हो जाता है।

24 वर्षीय प्रमिला की शादी उसके घरवालों ने चार्टर्ड एकाउंटेंट अंशुमान से तय की। वह जब अंशुमान से पहली बार मिलने गई तो अपने साथ एक गुडिय़ा ले गई। अंशुमान ने प्रमिला के पास जब गुडिय़ा देखी तो उसे हंसी आ गई। अगली डेट में प्रमिला फिर गुड़िया को ले गई। मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखते वक्त वह बीच-बीच में गुडिय़ा से बातें कर रही थी। अंशुमान को अजीब लगा और उसने झुझंलाकर कहा, ‘क्या यार! बच्चों की तरह ये गुडिय़ा लेकर आती हो। यह कहते ही प्रमिला रुआंसी होकर बोली, ‘प्लीज! इसके लिए मुझे मना मत करना, मैं इसे शादी के बाद भी अपने पास रखूंगी। अंशुमान समझदार था वह प्रमिला को साइकोलॉजिस्ट के पास ले गया।

मनोरोग है यह –
डॉक्टर ने बताया कि यह ऑब्जेक्टम सेक्सुअलिटी की समस्या से जुड़ा मनोरोग है। इसमें लोग किसी भी निर्जीव वस्तु जैसे गुड़िया, कम्प्यूटर, तकिया, टेडी बियर या किसी पौधे को अपना प्रेमी मानने लगते हैं और दिमाग में उससे जुड़ी कहानियां बुनते हुए फंतासी की दुनिया में जीते हैं। यह समस्या बचपन में हुई उपेक्षा, दुत्कार और रूखे व्यवहार से उपजती है। जब परिजन या माता-पिता बच्चे को किसी भावनाहीन या निर्जीव वस्तु की तरह ट्रीट करते हैं तो वह इस मनोरोग से ग्रसित हो जाता है।

सच्चाई बताना जरूरी –
ऐसे मरीजों को सच्चाई बतानी जरूरी होती है जो काउंसलिंग, ट्रोमा थैरेपी और मेडिकेशन के माध्यम से करनी चाहिए।

माता-पिता अपने बच्चों के प्रति स्नेह, उनकी देखभाल और उनसे बेहतर जुड़ाव में लापरवाही ना बरतें। उनकी आलोचना और उपेक्षा से बचें। उनसे अटेच्ड रहें। बच्चों को अपनत्व का माहौल देकर ही इस मनोरोग से बचा जा सकता है।

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