न्यूरोलॉजी विभाग और न्यूरो सर्जन दोनों विभागों की संयुक्त टीम मिलकर यह सर्जरी करती है। मिर्गी से विद्युत तरंगों की तीव्रता, किस हिस्से से, कब और कितनी बार आ रहा है इसकी जांच के लिए ईईजी जांच कराई जाती है। इस मशीन को मरीज के सिर पर दो दिनों तक जोड़े रखा जाता है। इससे दिमाग के किस हिस्से में दिक्कत हो रही है, उसका पता लगाया जा सके। इसके बाद न्यूरो सर्जन इस क्षतिग्रस्त हिस्से को सर्जरी के माध्यम से निकाल देते हैं। इसके बाद मरीज को मिर्गी के दौरे पडऩे बंद हो जाते हैं।
एसजीपीजीआई के चिकित्सकों के मुताबिक, मिर्गी के मरीज का अंतिम इलाज सर्जरी ही होती है। इससे सिर को ओपन कर माइक्रोस्कोप की मदद से दिमाग के क्षतिग्रस्त हिस्से को काटकर निकाल दिया जाता है। सर्जरी के पांच दिनों बाद मरीज को डिस्चार्ज किया जाता है।
गौरतलब है कि अब तक यह सर्जरी केवल केरल एवं दिल्ली के एम्स में होती थी। अब एसजीपीजीआई में भी इसका इलाज शुरू हो गया है। इस सर्जरी में करीब 40 हजार रुपये का खर्च आता है। इससे उत्तर प्रदेश ही नहीं, आसपास के कई राज्यों से लोग आकर यहां अ पना इलाज करा सकेंगे।