स्ट्रोमल वैस्क्युलर फे्रक्शन (एसवीएफ) नाम से मशहूर यह ऑस्ट्रेलियाई पद्धति है। भारत में इसके जरिए इलाज का अधिकार सहज हॉस्पिटल के पास है इसलिए इसका नाम सहज थैरेपी रखा गया।
मरीज को लोकल एनेस्थीसिया देकर पेट से करीब 200-300 एमएल फैट निकाला जाता है। लैब में इस फैट से करोड़ों कोशिकाओं को अलग किया जाता है। सुई की मदद से कोशिकाओं को प्रभावित जोड़ में प्रत्यारोपित करते हैं। नई कोशिकाएं जोड़ में दोबारा कार्टिलेज बनाने लगती हैं जिससे हड्डियों का आपस में टकराना, टूटना व दर्द जैसी समस्या दूर हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार यह थैरेपी समस्या का जड़ से इलाज करती है। इसमें चीर-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती व संक्रमण का खतरा भी नहीं होता।
– 01 माह तक मरीज को सीढिय़ां चढऩे-उतरने की मनाही होती है। कितना खर्च
इलाज का खर्च करीब तीन लाख है। लेकिन यदि मरीज के जोड़ में टेढ़ापन आ चुका हो या फिर चलने-फिरने में वह लचकता हो तो दवाओं के जरिए उसे पहले सामान्य स्थिति में लाया जाता है फिर थैरेपी से इलाज होता है। ऐसे में खर्च बढ़ भी सकता है।
पिछले डेढ़ साल में 90 फीसदी मामलों में इससे मरीजों को आराम मिला है। लेकिन परिणाम आने में हफ्तेभर से लेकर छह महीने तक का समय लग सकता है। कुछ मरीजों को हफ्तेभर से लेकर 15 दिनों में लाभ मिल जाता है वहीं कुछ को ठीक होने में तीन से छह महीने तक लगते हैं। यह रोग की गंभीरता पर निर्भर है।
– करीब एक से डेढ़ महीने तक मरीज को सीढिय़ा चढऩे-उतरने, अधिक वजन उठाने या किसी भी ऐसे काम को करने से मनाही होनी चाहिए जिससे जोड़ों पर जोर पड़े।
– कुछ समय तक खट्टे फल, अधिक मीठी और ठंडी चीजें न खाएं। इनसे सूजन आ सकती है।
– थैरेपी के बाद मरीज को दो से तीन महीने तक दवाओं के माध्यम से न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट दिए जाते हैं। इन्हें समय से लें जिससे किसी तरह की समस्या न हो।