नींद में बोलना ही बड़बड़ाना है, क्योंकि इस दौरान आधे-अधूरे या अस्पष्ट वाक्य बोल पाते हैं। यह एक तरह का पैरासोम्निया है। ऐसा अधिक से अधिक 30 सेकंड के लिए होता है। नींद में चलना, हाथ-पैर मारना, हंसना, गुस्सा होना भी इसी का हिस्सा हैं।
पैरासोम्निया के साथ ही बुरे या डरावने सपने इसके कारण हो सकते हैं। कई बार हम जिस बारे में सोच रहे होते है वे ही चीजें सपनों में आने लगती है। यदि ऐसा बचपन से होता है तो दिक्कत नहीं है, लेकिन अधिक उम्र में होना दूसरे रोगों की ओर संकेत करता है।
10 साल तक के बच्चों में अधिक
यह समस्या तीन से दस साल तक के बच्चों में अधिक सामने आती है। एक स्टडी के अनुसार, 10 में से एक बच्चा सप्ताह में कई बार बड़बड़ाता है। हालांकि इस दौरान बच्चे अपनी अधूरी बातें पूरी करते हैं।
काउंसलिंग ले सकते हैं
नींद में बहुत ज्यादा बात करने की समस्या हो तो किसी साइकोथैरेपिस्ट से परामर्श ले सकते है। मेलाटोनिन की कमी भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकती है। यदि किसी के साथ कमरा शेयर करते हैं तो उसे कहें कि आपके बड़बड़ाने पर वह आपको जगा दे, इससे आप ठीक ढंग से नींद ले पाएंगे।
आरईएम डिसऑर्डर
डिमेंशिया या पार्किंसन जैसी बीमारियों के साथ ही स्लीप बिहैवियर डिसऑर्डर आरईएम (रेपिड आइ मूवमेंट) में यह समस्या हो सकती है। इस दौरान इंसान सपने देखता है। दवाइओं का रिएक्शन, तनाव, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं आदि भी नींद में बड़बड़ाने की समस्या पैदा कर सकते हैं।
डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।