चिंता की बात ये है कि 1990 के बाद से भारत में अन्य रोगों की तुलना में मानसिक विकार संबंधी रोगों में लगभग दोगुनी आनुपातिक वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि देश की 19.73 करोड़ या 14.3 फीसदी आबादी एक या कई प्रकार के मानसिक विकार से पीड़ित है।
2017 में, लगभग 4.57 करोड़ लोगों को भारत में अवसादग्रस्तता विकार था और 4.49 करोड़ को चिंता संबंधी विकार था। वयस्कता के दौरान मुख्य रूप से प्रकट होने वाले मानसिक विकारों में, भारत में सबसे अधिक रोग का बोझ अवसादग्रस्तता और चिंता विकारों के कारण था, इसके बाद सिज़ोफ्रेनिया और द्विध्रुवी विकार शामिल थे।
शोध के अनुसार “तमिलनाडु, केरल, गोवा, और तेलंगाना में सबसे अधिक व्यापकता के साथ अवसादग्रस्तता विकार देखे गए, जबकि आंध्र प्रदेश में मध्य और ओडिशा सबसे कम व्यापकता के साथ अवसादग्रस्तता विकार देखे गए। दक्षिणी राज्यों में, वयस्कों में मानसिक विकार अधिक थे, जबकि उत्तरी राज्यों में बच्चों और किशोरों पर इसका ज्यादा प्रभाव था।
शोध में आशंका जताई गई है कि दक्षिणी राज्यों में अवसादग्रस्तता और चिंता विकारों का उच्च प्रसार इन राज्यों में आधुनिकीकरण और शहरीकरण के उच्च स्तर और कई अन्य कारकों से संबंधित हो सकता है, जो अभी तक अच्छी तरह से समझ में नहीं आए हैं।
मानसिक विकारों के जोखिम वाले कारकों में प्रमुख जोखिम, अंतरंग साथी हिंसा, बचपन यौन शोषण और बदमाशी का शिकार होना शामिल है। इसके अलावा, महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अवसादग्रस्तता और चिंता विकारों का अधिक प्रचलन देखा गया, जो लैंगिक भेदभाव, हिंसा, यौन दुर्व्यवहार, प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर तनाव और प्रतिकूल सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों से संबंधित हो सकते हैं। इसके अलावा भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का खराब क्रियान्वयन भी जिम्मेदार है।
NITI Aayog के सदस्य, विनोद पॉल ने कहा, “सामुदायिक स्तर की मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के एकीकरण के साथ स्वास्थ्य देखभाल के अन्य पहलुओं को राज्य सरकारों से उच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए।” यह भी पाया गया है कि अवसादग्रस्तता विकारों की व्यापकता पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए आत्महत्या की मृत्यु दर के साथ सीधे ताैर पर जुड़ी हुई थी।