जरूरत कब –
रोगों को दूर करने के लिए शरीर को पौष्टिक तत्त्वों के अलावा माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (जिंक, आयरन, चांदी, कैल्शियम) की भी जरूरत होती है जिनकी पूर्ति रत्नों व धातुओं से की जाती है। ऐसे में इन्हें सीधे तौर पर खाना संभव नहीं होता। इसलिए इन्हें औषधि के रूप में देते हैं। बेहद सूक्ष्म कण होने के कारण इस पद्धति में इसे बहुत कम मात्रा में प्रयोग करते हैं। मरीज की स्थिति और रोग के अनुसार भस्म को उचित औषधि के साथ लेने के लिए कहते हैं।
तैयार करने की विधि-
जरूरत के अनुसार धातु व रत्न को राख (अहराक) होने तक जलाते हैं। इस प्रक्रिया को ‘तकलीस’ कहते हैं। इसके बाद रोग और उसकी गंभीरता के अनुसार राख की अल्प मात्रा को विभिन्न औषधियों (रस, पाउडर या दरदरा) में शुद्ध कर मिलाया जाता है।
विभिन्न तरह की धातुओं से बनाते हैं
अलग-अलग औषधि के साथ इनकी तय मात्रा शरीर में अवशोषित हो जाती है। कई रोगों में इन्हें इस्तेमाल करते हैं।
कुश्ता-ए-नुकरा-
चांदी के कणों से तैयार करते हैं जिसमें दूधी बूटी औषधि को मिलाते हैं।
फायदा : हृदय, दिमाग और लिवर के लिए इसे विशेष रूप से इस्तेमाल करते हैं। इसके प्रयोग से कमजोरी और धड़कनें तेज होने की समस्या दूर होती है।
कुश्ता-ए-हिज्र-उल-यहूद-
विशेष तरह के पत्थर (हिज्र-उल-यहूद) से तैयार करते हैं जिसमें मूली के पत्तों के रस को मिलाते हैं।
फायदा- यह किडनी की पथरी को तोड़ने और गलाने का काम करती है। साथ ही पथरी को नई जगह बनने नहीं देती।
कुश्ता-ए-फौलाद-
लौह के कणों से तैयार करते हैं जिसमें अनार का रस मिलाते हैं।
फायदा- यह भस्म हमारे शरीर में रक्त की की कमी को दूर करने का काम करती है। इसके इस्तेमाल से पेट और लिवर से जुड़े रोगों में आराम पहुंचता है और इन अंगों की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी देखने को मिलती है। यह ताकत भी बढ़ाती है।
रत्नों को जलाकर बनने वाली कुश्ता –
हृदय रोगों का इलाज –
कुश्ता-ए-जमारुद (एमरेल्ड), कुश्ता-ए-सिम्मुल फार (आर्सेनिक), कुश्ता-ए-सदफ (सीप), कुश्ता-ए-अकीक (गार्नेट), कुश्ता-ए-मर्जान (मूंगा), कुश्ता-ए-तिला (सोना), कुश्ता-ए-याकूत (माणिक) आदि अहम हैं।
फायदा – कार्डियोवस्कुलर से जुड़ी परेशानियों के अलावा दिमाग को तेज करने, पुरानी बीमारी, कमजोरी आदि में स्टेरॉयड की तरह काम करती है।
लेने का तरीका –
भस्म की बेहद सूक्ष्म मात्रा भी शरीर में जाकर हर अंग और कोशिका पर असर करती है। ऐसे में इन्हें चावल के दाने के आकार जितना यानी रत्ती के बराबर लेने की सलाह देते हैं। पानी, अर्क, शरबत के साथ इसे सुबह व शाम को लेना होता है।
कुश्ता-ए-गोदंती –
इसे जिप्सम के कणों से तैयार करते हैं जिसमें अश्वगंधा को उबालकर इसके पानी को मिलाते हैं।
फायदा- इस भस्म को कैल्शियम का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। इसे जोड़ों की मजबूती, संक्रमण, मलेरिया बुखार और पैरालिसिस के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
कुश्ता-ए-अबरक –
मिका के कणों से तैयार करते हैं जिसमें मूली का पानी, गिलोय जड़ी-बूटी का पानी और शौरा काल्मी (पोटेशियम नाइट्रेट) को भी मिलाते हैं।
फायदा- पुराने बुखार, अस्थमा, खांसी व ट्यूबरक्लोसिस में देते हैं।
नोट: डॉक्टरी सलाह के बिना किसी भी भस्म को इस्तेमाल में न लें।