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शरीर के सप्तचक्र जागृत करके रह सकते हैं कई बीमारियों से दूर

आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक औषधि विज्ञान के अनुसार शरीर में सात चक्र होते हैं जिन्हें सप्तचक्र या ऊर्जा की कुंडली भी कहते हैं। सामान्यत: क्रमश: तीन चक्र भी किसी व्यक्ति में जाग्रत हों तो वह स्वस्थ कहलाता है।

May 24, 2019 / 03:12 pm

विकास गुप्ता

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आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक औषधि विज्ञान के अनुसार शरीर में सात चक्र होते हैं जिन्हें सप्तचक्र या ऊर्जा की कुंडली भी कहते हैं। सामान्यत: क्रमश: तीन चक्र भी किसी व्यक्ति में जाग्रत हों तो वह स्वस्थ कहलाता है।

आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक औषधि विज्ञान के अनुसार शरीर में सात चक्र होते हैं जिन्हें सप्तचक्र या ऊर्जा की कुंडली भी कहते हैं। सामान्यत: क्रमश: तीन चक्र भी किसी व्यक्ति में जाग्रत हों तो वह स्वस्थ कहलाता है। हमारे शरीर में लगभग 72 हजार नाड़ियां हैं जिनमें शरीर का संचालन करने में प्रमुख 12 नाड़ियां दिमाग में हैं। आध्यात्मिक रूप से तीन नाड़ियां ईड़ा, पिंगला व सुषुम्ना का जिक्र है। ईड़ा व पिंगला के सक्रिय होने के बाद ही सुषुम्ना जागृत होती है जिसके बाद सप्तचक्र जागृत होते हैं। मूलाधार चक्र जागृत होने के बाद रोग धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं जिससे अन्य चक्र भी जागृत होते हैं।

1. मूलाधार चक्र –
यह रीढ़ की सबसे निचली सतह पर गुदा के ठीक पीछे होता है।
भूमिका : यह शरीर के दाएं-बाएं हिस्से में संतुलन बनाने व अंगों का शोधन करने का काम करता है। यह पुरुषों में टैस्टीज और महिलाओं में ओवरी की कार्यप्रणाली को सुचारू रखता है।
ऐसे करें जागृत : शरीर की गंदगी दूर करने वाले योगासन से यह जागृत होता है। जैसे वॉक व जॉगिंग। स्वास्तिका, पश्चिमोत्तानासन व भूनम्नासन जैसे आसन और कपालभाति प्राणायाम से मानसिक-शारीरिक शांति व स्थिरता बनती है।

2. स्वाधिष्ठान चक्र –
यह रीढ़ में यूरिनरी ब्लैडर के ठीक पीछे स्थित होता है।
भूमिका : यह जेनेटिक, यूरिनरी और प्रजनन प्रणाली पर नजर रखने के साथ ही जरूरी हार्मोंस के स्त्रावण को नियंत्रित करने में मददगार है।
ऐसे करें जागृत : जानुशिरासन, मंडूकासन, कपालभाति 10-15 मिनट के लिए नियमित करें।

3. मणिपुर चक्र –
नाभि के ठीक पीछे होता है।
भूमिका : यह पाचक व अंत: स्त्रावी ग्रंथि से जुड़ा है। पाचनतंत्र को मजबूती देने व शरीर में गर्मी व सर्दी के सामंजस्य को बनाता है।
ऐसे करें जागृत : पवनमुक्तासन, मंडूकासन, एकपादमुक्तासन, भस्त्रिका व कपालभाति प्राणायाम 10-15 मिनट रोजाना करें।

4. अनाहत चक्र –
रीढ़ में हृदय के पीछे थोड़ा नीचे की ओर स्थित होता है।
भूमिका : हृदय और फेफड़ों की सफाई कर इनकी कार्यक्षमता को सुधारता है।
ऐसे करें जागृत : ऊष्ठासन, भुजंगासन, अर्धचक्रासन, भस्त्रिका प्राणायाम करें।

5. विशुद्धि चक्र –
यह गर्दन में थायरॉइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है।
भूमिका : बेसल मेटाबॉलिक रेट (बीएमआर) को संतुलित रखता है। पूरे शरीर को शुद्ध करता है।
ऐसे करें जागृत : हलासन, सेतुबंधासन, उच्चाई और सर्वांगासन प्राणायाम करें।

6. आज्ञा चक्र –
चेहरे पर दोनों भौहों के बीच स्थित होता है।
भूमिका : मानसिक स्थिरता व शांति को बनाए रखता है। यह मनुष्य के ज्ञानचक्षुओं को खोलता है।
ऐसे करें जागृत : अनुलोम-विलोम, सुखासन, मकरासन और शवासन करें।

7. सहस्रार चक्र –
सिर के ऊपरी हिस्से के मध्य स्थित होता है। इसे शांति का प्रतीक भी कहते हैं।
भूमिका : शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक सभी स्तर में सामंजस्य बनाता है।
ऐसे करें जागृत : बाकी छह के जागृत होने पर यह चक्र स्वत: ही जागृत हो जाता है।

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