1. मूलाधार चक्र –
यह रीढ़ की सबसे निचली सतह पर गुदा के ठीक पीछे होता है।
भूमिका : यह शरीर के दाएं-बाएं हिस्से में संतुलन बनाने व अंगों का शोधन करने का काम करता है। यह पुरुषों में टैस्टीज और महिलाओं में ओवरी की कार्यप्रणाली को सुचारू रखता है।
ऐसे करें जागृत : शरीर की गंदगी दूर करने वाले योगासन से यह जागृत होता है। जैसे वॉक व जॉगिंग। स्वास्तिका, पश्चिमोत्तानासन व भूनम्नासन जैसे आसन और कपालभाति प्राणायाम से मानसिक-शारीरिक शांति व स्थिरता बनती है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र –
यह रीढ़ में यूरिनरी ब्लैडर के ठीक पीछे स्थित होता है।
भूमिका : यह जेनेटिक, यूरिनरी और प्रजनन प्रणाली पर नजर रखने के साथ ही जरूरी हार्मोंस के स्त्रावण को नियंत्रित करने में मददगार है।
ऐसे करें जागृत : जानुशिरासन, मंडूकासन, कपालभाति 10-15 मिनट के लिए नियमित करें।
3. मणिपुर चक्र –
नाभि के ठीक पीछे होता है।
भूमिका : यह पाचक व अंत: स्त्रावी ग्रंथि से जुड़ा है। पाचनतंत्र को मजबूती देने व शरीर में गर्मी व सर्दी के सामंजस्य को बनाता है।
ऐसे करें जागृत : पवनमुक्तासन, मंडूकासन, एकपादमुक्तासन, भस्त्रिका व कपालभाति प्राणायाम 10-15 मिनट रोजाना करें।
4. अनाहत चक्र –
रीढ़ में हृदय के पीछे थोड़ा नीचे की ओर स्थित होता है।
भूमिका : हृदय और फेफड़ों की सफाई कर इनकी कार्यक्षमता को सुधारता है।
ऐसे करें जागृत : ऊष्ठासन, भुजंगासन, अर्धचक्रासन, भस्त्रिका प्राणायाम करें।
5. विशुद्धि चक्र –
यह गर्दन में थायरॉइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है।
भूमिका : बेसल मेटाबॉलिक रेट (बीएमआर) को संतुलित रखता है। पूरे शरीर को शुद्ध करता है।
ऐसे करें जागृत : हलासन, सेतुबंधासन, उच्चाई और सर्वांगासन प्राणायाम करें।
6. आज्ञा चक्र –
चेहरे पर दोनों भौहों के बीच स्थित होता है।
भूमिका : मानसिक स्थिरता व शांति को बनाए रखता है। यह मनुष्य के ज्ञानचक्षुओं को खोलता है।
ऐसे करें जागृत : अनुलोम-विलोम, सुखासन, मकरासन और शवासन करें।
7. सहस्रार चक्र –
सिर के ऊपरी हिस्से के मध्य स्थित होता है। इसे शांति का प्रतीक भी कहते हैं।
भूमिका : शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक सभी स्तर में सामंजस्य बनाता है।
ऐसे करें जागृत : बाकी छह के जागृत होने पर यह चक्र स्वत: ही जागृत हो जाता है।