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मानसिक कारणों की वजह से होने वाले शारीरिक विकार के लक्षण हिस्टीरिया रोग की ओर संकेत करते हैं। यह रोग hysteria symptoms in female : स्त्री और पुरुष दोनों को होता है। लेकिन महिलाएं स्वभाव से अधिक संवेदनशील होती हैं और भावनाओं में बहकर अत्यधिक मानसिक तनाव लेती हैं। इसलिए वे इस रोग की चपेट में ज्यादा आती हैं।लड़कियों की शादी में देरी, पति-पत्नी के बीच लड़ाई-झगड़े, पति की अवहेलना या दुव्र्यवहार, तलाक, मृत्यु, गंभीर आघात, धन हानि, मासिक धर्म विकार, संतान न होना, गर्भाशय के रोग आदि ऐसे कई कारण हैं जो इस बीमारी की वजह बनते हैं। जब घर में झगड़े हों, प्रेम में असफलता, अपच व कब्ज की शिकायत बनी रहे, रोगी के चेतन या अचेतन मन में चल रहे किसी तनाव का दबाव बहुत बढ़ जाए और उससे बाहर निकलने का जब कोई रास्ता न दिखे तो वह जिन भावों में व्यक्त होता है उसे हिस्टीरिया के नाम से जाना जाता है।
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Identify this disease – पहचानें इस रोग को –
शरीर के किसी अंग में ऐंठन, थरथराहट, बोलने की शक्ति का नष्ट होना, निगलने व सांस लेते समय दम घुटना, बहरापन, तेज-तेज चिल्लाना या खूब हंसना जैसे लक्षण सुनिश्चित करते हैं कि स्त्री हिस्टीरिया से ग्रसित है। रोग के लक्षण एकाएक प्रकट या लुप्त हो सकते हैं। लेकिन कभी-कभी लगातार हफ्तों या महीनों तक भी ये बने रह सकते हैं।
अक्सर लोग हिस्टीरिया और मिर्गी के दौरे में अन्तर नहीं समझ पाते। मिर्गी में रोगी को अचानक दौरा पड़ता है। रोगी कहीं पर भी रास्ते में, बस में, घर पर गिर जाता है। उसके दांत भिच जाते हैं, जिससे उसके होंठ और जीभ भी दांतों के बीच में आ जाती है जबकि हिस्टीरिया रोग मे ऐसा नहीं होता। रोगी को हिस्टीरिया का दौरा पडऩे से पहले ही महसूस हो जाता है और वह कोई सुरक्षित स्थान देखकर वहां लेट सकता है। उसके दांत भिचने पर होंठ और जीभ दांतों के बीच में नहीं आती। दौरा पडऩे पर रोगी के कपड़े ढीले कर देने चाहिए और उसके शरीर को हवा लगने देनी चाहिए। जैसे-जैसे दौरा खत्म होता है, रोगी खुद ही खड़ा हो सकता है।
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According to Ayurveda आयुर्वेद के अनुसार –आयुर्वेद के ग्रंथ ‘माधव निदान’ के परिशिष्ट में ‘योषा अपस्मा’ के नाम से इस रोग का वर्णन किया है। इस ग्रंथ के अनुसार यह रोग 12-50 वर्ष तक की आयु में होता है।
पुराने घी का प्रयोग और पूरे शरीर पर इसकी मालिश फायदेमंद होती है। पुराने घी की दो बूंदें नाक में रोजाना डालने से भी लाभ मिलता है। दूध स्वभाव से ओज की वृद्धि करता है और ओज के बढ़ने से मन की क्षमता में इजाफा होने लगता है। काश्यप संहिता में लिखा है कि मानसिक रोगों को धृति, वीर्य, स्मृति ज्ञान तथा विज्ञान के द्वारा नष्ट किया जाता है। रसयुक्त और चिकने पदार्थों का सेवन करने वालों में सात्विक गुणों की वृद्धि होती है।
जिन कारणों से यह रोग हुआ है उन्हें दूर करके इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, यह रोग भी ठीक होता जाता है। ध्यान रहे कि इस रोग से पीडि़त व्यक्ति पर गुस्सा न करें क्योंकि इच्छाएं पूरी न होने की वजह से वह पहले ही किसी बात से परेशान होता है। इसलिए उसके साथ सौम्य स्वभाव के साथ बातचीत करें। उसकी बातों को ध्यान से सुनें और उसे बार-बार यह एहसास न दिलाएं कि वह किसी समस्या से पीडि़त है।
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मरीज को सकारात्मक सोच रखने के लिए प्रेरित करें। उसके अच्छे कामों के लिए उसे प्रोत्साहित करें। रोगी का स्वभाव बदलने के लिए उसे किसी जगह पर घुमाने के लिए भी ले जा सकते हैं। चरक संहिता के अनुसार मानसिक रोगों में सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा बुद्धि, धैर्य व आत्मज्ञान है। हितकर आहार-विहार, दान करने की भावना विकसित करें। क्षमाशीलता और अच्छा आचरण अपनाएं।