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टीबी के इलाज में कारगर है ईयूएस तकनीक, जानें इनके बारे में

नई जांच तकनीक एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड (ईयूएस) भी इस रोग का पता लगाने के लिए प्रभावी है।

Apr 28, 2019 / 04:45 pm

विकास गुप्ता

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नई जांच तकनीक एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड (ईयूएस) भी इस रोग का पता लगाने के लिए प्रभावी है।

भारत में हर साल टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) के लगभग लाखों मामले सामने आते हैं। फिलहाल इस रोग का पता एक्स-रे और बलगम की जांच करके लगाया जाता है। लेकिन नई जांच तकनीक एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड (ईयूएस) भी इस रोग का पता लगाने के लिए प्रभावी है। इससे न केवल बीमारी की सही पहचान होती है बल्कि रोग का फौरन पता भी चल जाता है।

ईयूएस तकनीक –
इस तकनीक में पाइप की तरह का एक उपकरण (प्रोब) होता है जिसमें जांच यंत्र और कैमरा लगा होता है। इसे आहारनली के रास्ते शरीर के अंदर डाला जाता है जो फेफड़े या अन्य अंगों की जांच करता है। इसमें लगा कैमरा अंगों की नजदीक से जांच कर सही स्थिति को बाहर लगी स्क्रीन पर दिखाता है जिससे डॉक्टर गड़बड़ी का पता लगाकर सही इलाज तय करते हैं।

रोगों की जल्द पहचान –
इस तकनीक का इस्तेमाल टीबी के अलावा फेफड़ों, फूड पाइप व गॉलब्लैडर के कैंसर और पैनक्रियाज संबंधी रोगों की जांच में किया जाता है। इस उपकरण से टीबी का शुरुआती अवस्था में ही पता लगाया जा सकता है जबकि बलगम और एक्स-रे परीक्षण में संक्रमण फैलने के बाद ही बीमारी का पता चल पाता है। इसके अलावा एक्स-रे जांच में मरीज को रेडिएशन का भी खतरा रहता है।

कई फायदे –
ईयूएस तकनीक रोग का पता लगाने के साथ-साथ उपचार करने का भी काम करती है। टीबी की वजह से कई बार फेफड़ों में पानी भर जाता है या इस अंग में कैंसर की आशंका की स्थिति में इलाज के लिए भी ईयूएस की मदद ली जाती है। ईयूएस से पानी बाहर निकाल दिया जाता है और कैंसर की जांच (बायोप्सी) के लिए संक्रमित हिस्से से ट्श्यिू लिया जाता है। पैनक्रियाटाइटिस की सर्जरी में भी ईयूएस तकनीक का प्रयोग होता है।

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