कब जरूरत : व्यवहार में बदलाव, सिर पर लगी चोट, अनिद्रा, मिर्गी, दिमाग में इंफेक्शन, ब्रेन ट्यूमर, याद्दाश्त में कमी, स्ट्रोक का पता करने के लिए करते हैं।
ऐसे होता है टैस्ट : टेक्नीशियन सिर के अलग-अलग हिस्सों पर इलेक्ट्रोड्स को चॉक, मिट्टी या अन्य से तैयार पेस्ट से चिपकाते हैं। ये इलेक्ट्रोड्स एक हैड बॉक्स (एम्प्लीफायर) से जुड़े होते हैं जहां दिमाग की हर हरकत रिकॉर्ड होती है। इसमें एक सॉफ्टवेयर की मदद से दिमाग की जानकारी मिलती है। इस हैड बॉक्स को कम्प्यूटर से कनेक्ट कर देते हैं। जिस पर तरंगों को देख सकते हैं। मरीज को पहले आंखें बंद कर शरीर को ढीला छोड़ने फिर आंखें खोलने व बाद में लंबी सांस लेेेने के लिए कहा जाता है। इस दौरान कम्प्यूटर स्क्रीन पर तरंगों का स्तर ज्यादा या कम होने पर रोग की पुष्टि होती है।
टैस्ट से पहले –
ईईजी से एक दिन पहले दवा, नशे वाली चीजें या कैफीन युक्त पदार्थ न लेने व मरीज को पूरी नींद लेकर आने की सलाह दी जाती है।