रोग और उपचार

माहवारी के दिनों के लिए मां अपनी बेटियों को समझाएं ये बातें

हार्मोंस में हुए बदलावों से बच्चियों में चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है इसलिए ऐसे में काउंसलिंग कर उनका सहयोग करना चाहिए।

Mar 04, 2019 / 07:55 pm

विकास गुप्ता

हार्मोंस में हुए बदलावों से बच्चियों में चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है इसलिए ऐसे में काउंसलिंग कर उनका सहयोग करना चाहिए।

हार्मोंस में हुए बदलावों से बच्चियों में चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है इसलिए ऐसे में काउंसलिंग कर उनका सहयोग करना चाहिए।

महिलाओं के शरीर में हार्मोंस अहम भूमिका निभाते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक शरीर में हार्मोंस का उतार-चढ़ाव होता रहता है। इसका एक असर हर महीने माहवारी के रूप में भी देखने को मिलता है। आमतौर पर यह 11-12 साल की उम्र में शुरू होती है और इसके साथ ही शरीर में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। बचपन खत्म होने के साथ शुरू होता है युवा अवस्था का सफर। ऐसे में माता-पिता होने के नाते हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उम्र के इस खास बदलाव के लिए अपनी बेटी को मानसिक तौर पर तैयार करें क्योंकि कई बार अचानक शुरू हुई माहवारी मानसिक रूप से परेशान भी कर सकती है।

भावनात्मक सलाह दें –
माहवारी शुरू होने वाली उम्र में बच्ची को महिला की संरचना और उम्र के साथ होने वाले बदलावों की जानकारी देनी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि महिला के शरीर में बच्चेदानी, अंडेदानी व दूसरे अंगों की अहम भूमिका है। हर महीने माहवारी आना इन बदलावों का एक हिस्सा है और इसमें किसी तरह की शर्म, झिझक या ग्लानि की कोई जरूरत नहीं। घर के सभी सदस्यों को यह समझना होगा कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है और इसमें किसी तरह का परहेज या प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं। बेटी के साथ सामान्य बर्ताव करें व उसे यह अहसास न होने दें कि वह महीने के चंद दिन घरवालों से अलग हो जाती है।

खानपान का ध्यान रखें-
बच्चियों को आयरन और प्रोटीन युक्त खाना जैसे गुड़, हरी पत्तेदार सब्जियां, दाल, सोयाबीन, बींस, पनीर, दूध व दूध से बने पदार्थ आदि भरपूर मात्रा में दें। वसायुक्त, तले-भुने व मसालेदार युक्त भोजन से परहेज कराएं। उन्हें नियमित व्यायाम के लिए प्रेरित करें ताकि शरीर में हार्मोंस का संतुलन बना रहे।

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