दौरों का कारण : प्रेग्नेंसी में शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, नींद में कमी, मानसिक तनाव व दवाओं से मेटाबॉलिज्म में बदलाव और रक्त में मिर्गी की दवाई की मात्रा का कम होना।
दुष्प्रभाव : गर्भपात, रक्तस्त्राव, नाल का समय पूर्व विच्छेदन, प्रसव पूर्व दौरे, समय से पहले डिलीवरी, प्रसव में जटिलता, मानसिक विकार और दौरे के कारण बेहोशी आदि।
शिशु को नुकसान : प्रीमेच्योर या मृत शिशु का होना, कम वजन, ऑक्सीजन की कमी से शिशु की हार्ट रेट कम होना, गर्भ में चोट लगने व शारीरिक विकृतियों की आशंका रहती है।
ये सावधानी बरतें –
गर्भधारण से पहले –
यदि कोई महिला पहले से मिर्गी से पीड़ित है तो गर्भधारण से पहले डॉक्टरी सलाह से दवाएं लें। हार्मोन में संतुलन व दौरे नियंत्रित रखने के लिए फॉलिक एसिड की एक गोली रेगुलर दी जाती है।
प्रसव के दौरान –
ऐसी महिलाओं की डिलीवरी अच्छे और उपकरणों से सुसज्जित अस्पतालों में ही करवानी चाहिए। ऐसा रोग की वजह से जटिल प्रसव की आशंका के चलते जरूरी है।
प्रसव के बाद –
डॉक्टरी सलाह पर मिर्गी की दवाएं नियमित लेनी चाहिए। इस दौरान बच्चे को स्तनपान कराती रहें क्योंकि मां के दूध से उसके शरीर में मिर्गी की दवाइयों की मात्रा बेहद कम हो जाती है।
ध्यान रखें : मिर्गी की जांच के लिए ब्लड टैस्ट के अलावा एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआई कराई जाती है। गर्भवती महिलाओं को एक्स-रे और सीटी स्कैन से रेडिएशन का खतरा रहता है। बहुत जरूरी हो तो ही पहले तीन माह में एमआरआई कराएं।
बचाव : दौरे आने पर मरीज को जूता या प्याज न सुंघाएं। यह छुआ-छूत अथवा दैवीयप्रकोप की बीमारी नहीं है, इसलिए झाड़-फूंक की जगह डॉक्टर से सही इलाज कराएं।