कई बार छोटी-सी लगने वाली परेशानी भारी पड़ सकती है। ऐसे में छाया दिखना, धुंधला दिखना छल्ले दिखना, आंखों में दर्द, सिर दर्द, काले धब्बे दिखना, कम रोशनी में देखने में परेशानी होना जैसे लक्षणों के होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए क्योंकि थोड़ी-सी भी लापरवाही भारी पड़ सकती है।
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डायबिटिक के खून में ग्लूकोज यानी शुगर की मात्रा बढ़ जाती है जो शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर उन्हें कमजोर बनाती है। रेटिना को घेरे रखने वाली रक्त कोशिकाएं भी ब्लड शुगर का स्तर बढऩे की वजह से धीरे-धीरे कमजोर होने लगती है। इनमें सूजन आने लगती है। इस वजह से रेटिना तक रोशनी पहुंचने में दिक्कत होती है। किसी वस्तु पर पड़ने वाला प्रकाश उससे टकराकर हमारी आंखों के रेटिना पर पड़ता है जिससे हम उस वस्तु को देख पाते हैं। रेटिनोपैथी दोनों आंखों को प्रभावित कर सकती है। यह भी हो सकता है कि शुरुआत में आपको कोई लक्षण न दिखें।
मोतियाबिंद किसी भी व्यक्ति को हो सकता है लेकिन डायबिटीज के रोगियों को इसका खतरा ज्यादा होता है। मोतियाबिंद में आंख के लेंस पर धुंध जैसी जम जाती है जिसकी वजह से हमें कोई भी चीज साफ दिखाई नहीं देती है। इस समस्या को दूर करने के लिए सर्जरी की जाती है। सर्जरी के दौरान आंख के लेंस को निकाल लिया जाता है और उसकी जगह प्लास्टिक का लेंस लगा दिया जाता है।
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जब आंखों के अंदर बनने वाली फ्लूइड (तरल पदार्थ) बाहर नहीं निकल पाती तो ये आंख पर अतिरिक्त दबाव डालती हैं। दबाव आंखों की मुख्य तंत्रिका तंत्र ऑप्टिक नर्व (यह तंत्रिका मस्तिष्क को रेटिना से दृश्य जानकारी देती है) को नुकसान पहुंचाता है जिसकी वजह से धीरे-धीरे आंखों की रोशनी कम होने लगती है। हालांकि इसका इलाज मोतियाबिंद या डायबिटिक रेटिनोपैथी की अपेक्षा आसान है। इसमें आंखों का दबाव कम करने और फ्लूइड को बाहर निकालने के लिए ड्रॉप दी जाती है।
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आंखों की नियमित रूप से जांच कराएं
ब्लड शुगर को नियंत्रित रखें
ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखे
खानपान का पूरी तरह ध्यान रखें
धूम्रपान से बचें
नियमित व्यायाम करें
लेकिन ऐसे भारी व्यायाम से बचें जो पूरे शरीर के साथ-साथ आंखों की कोशिकाओं पर दबाव डालते हों।