कारण
हृदय की हर मांसपेशी की कोशिका की सतह पर छोटे खुले-बंद छिद्र या आयन चैनल होते हैं। जो कैल्शियम और पोटेशियम परमाणु कोशिकाओं को अंदर व बाहर विद्युत चार्ज करने देते हैं। परमाणु का यह मार्ग हृदय की विद्युत गतिविधि को उत्पन्न करता है। यह विद्युत संकेत हृदय के चारों ओर फैलकर हृदय को रक्त की पंपिंग में मदद करता है। विद्युतीय तंरग में गड़बड़ी से दिक्कत होती है।
लक्षण पहचानें
ब्रूगाडा सिंड्रोम में लक्षण ३0-40 की उम्र में शुरू होते हैं। लेकिन ये बचपन में भी जल्दी उभर सकते हैं। इसके लक्षणों में बेहोशी छाना, चक्कर आना, दिल का दौरा, हृदय की धड़कनों की लय असामान्य व अचानक तेज होना शामिल हैं। ईसीजी (लय व दिल की विद्युत गतिविधि रिकॉर्ड करना) और जेनेटिक परीक्षण (दोषपूर्ण जीन की पहचान) से रोग की पहचान होती है।
इसलिए है घातक
यह तब ज्यादा घातक हो जाता है जब हृदय में संकुचन के कारण गति अचानक बेहद धीमी होने लगती है और रुकने से हृदय रक्त को पंप नहीं कर पाता। यह सिंड्रोम युवाओं में अचानक हृदय संबंधी मौत का कारण बनता है। कुछ मामलों में ऐसा छोटी उम्र के शिशुओं में भी होता है जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है। इस सिंड्रोम से होने वाली कई मौतों में चेतावनी का कोई संकेत नहीं दिखता।
कौन प्रभावित
युवा और मध्यम वर्ग के लोगों के अलावा पुरुष ज्यादा प्रभावित होते हैं। जिसका कारण टेस्टॉस्टेरॉन हार्मोन है। आनुवांशिक होने के कारण नवजात शिशु में इसकी आशंका कुछ हद तक बढ़ जाती है।
डॉक्टरी सलाह
सभी लोगों में जरूरी नहीं कि ब्रुगाडा सिंड्रोम केवल आनुवांशिक रोग हो। कुछ लोगों में इस सिंड्रोम के होने पर कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। हालांकि अतालता, एनजाइना, हाई ब्लड प्रेशर और अवसाद के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं से भी इसका जोखिम बढ़ जाता है। कैल्शियम या पोटेशियम का असामान्य रूप से उच्च स्तर व पोटेशियम का निम्न स्तर रोग का कारण होता है। धड़कनों में असामान्यता लगेे तो विशेषज्ञ से मिलें।
– डॉ. राम चितलांगिया, सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट, जयपुर