रोग और उपचार

हड्डियां, पेट, दिमाग, किडनी, जननांग व मुंह-नाक कहीं भी हो सकती है ‘टीबी’, जाने इसके बारे में

टीबी के बारे में जानते हैं विस्तार से।

Mar 01, 2019 / 04:40 pm

विकास गुप्ता

टीबी के बारे में जानते हैं विस्तार से।

टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) एक संक्रामक बीमारी है जिसके कीटाणु हवा के जरिए एक से दूसरे व्यक्ति में पहुंचते हैं। यदि इलाज ठीक से न हो तो यह रोग जानलेवा हो सकता है। टीबी सिर्फ फेफड़ों से जुड़ी समस्या नहीं बल्कि शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है जैसे हड्डियां, जोड़, पेट, आंत, दिमाग, किडनी, जननांग व मुंह-नाक आदि। टीबी दो प्रकार की होती है। फेफड़ों में टीबी होने पर इसे पल्मोनरी व फेफड़ों के बाहर किसी भी अंग में होने पर इसे एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी कहते हैं। अमूमन 70 प्रतिशत मरीज पल्मोनरी टीबी और 30 प्रतिशत एक्सट्रा पल्मोनरी के शिकार होते हैं। पल्मोनरी टीबी के कीटाणु हवा के संपर्क से एक से दूसरे व्यक्ति के लिए खतरा बनते हैं। यदि पल्मोनरी टीबी का मरीज, जिसकी सांस में बीमारी के कीटाणु हों, इलाज न ले तो वह एक वर्ष में 10-14 व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है। जबकि एक्सट्रा पल्मोनरी के मरीजों से दूसरों को संक्रमण का खतरा नहीं होता है। टीबी के बारे में जानते हैं विस्तार से।

कारण-
पल्मोनरी टीबी : धूम्रपान, संतुलित आहार न लेना या गंदगी।
खतरा : फेफड़ों के रोग।
एक्स्ट्रा पल्मोनरी: रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) में कमी होती है।
खतरा : इम्युनिटी में कमी से डायबिटीज, एचआईवी व गर्भवती महिलाओं को खतरा ज्यादा होता है।
लक्षण –
पल्मोनरी टीबी : हल्का बुखार, कफ, खांसी, सांस की दिक्कत व वजन घटना।
एक्सट्रा पल्मोनरी : जिस अंग में टीबी है वहां सूजन या दर्द, हल्का बुखार, रात में पसीना आना, भूख न लगना और छाती में पानी भरना आदि।

प्रमुख जांच –
पल्मोनरी टीबी : बलगम की जांच, छाती का एक्सरे, सीटी स्कैन व ब्रोंकोस्कोपी (फेफड़ों की एंडोस्कोपी)।
एक्सट्रा पल्मोनरी : खून की जांच,स्नहृ्रष्ट (जिस अंग में टीबी है वहां की गांठ से एक या दो बूंद पानी लेकर जांच) अंग का सीटी स्कैन या बायोप्सी।
इलाज की अवधि –
पल्मोनरी टीबी : इसका इलाज 6-9 माह तक चलता है। स्थिति गंभीर होने पर 18-24 माह लग सकते हैं। जांचें सरकारी अस्पतालों में मुफ्त होती हैं।
एक्सट्रा पल्मोनरी टीबी : उपचार 9-12 माह का होता है। रोग गंभीर होने पर 18-24 माह भी लग सकते हैं। जांचें सरकारी अस्पतालों में मुफ्त होती हैं।

आंखों की टीबी –
जब टीबी के लक्षण आंखों में आ जाते हैं तो उसे आंखों की टीबी कहा जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज को धुंधला दिखाई देना, आंखें लाल होना, काले धब्बे नजर आने जैसी समस्याएं होने लगती हैं। यह समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। यदि इस तरह की समस्या ज्यादा दिनों तक रहे तो फौरन डॉक्टर से जांच कराएं।

कारण : टीबी के संक्रामक कीटाणु हवा या अन्य किसी भी माध्यम से आंखों तक पहुंचकर इस अंग की टीबी का कारण बन सकते हैं।
जांच व इलाज : इसके लिए पॉलीमरेज चेन रिएक्शन टेस्ट किया जाता है। यह जांच चुनिंदा सरकारी अस्पतालों में मुफ्त की जाती है। इलाज में एक से डेढ़ साल का वक्त लगता है।

ध्यान रखें –
पल्मोनरी टीबी के मरीज खांसते या छींकते समय मुंह पर रुमाल रखें ताकि उनके कीटाणु अन्य लोगों को संक्रमित न करें।
मरीज किसी एक डिब्बे में मिट्टी डालकर उसमें कफ आदि थूकें व अगले दिन इसे मिट्टी में दबा दें।
टीबी से पीडि़त महिला बच्चे को फीड करा सकती है। गर्भावस्था के दौरान यदि मां को बच्चेदानी की टीबी हो जाए तो उस समय टीबी की कुछ दवाओं को रोक दिया जाता है क्योंकि इससे बच्चे के शारीरिक विकास में बाधा आ सकती है।

पौष्टिक आहार लें –
सामान्य लोग टीबी से बचने के लिए पौष्टिक आहार लें। साफ वातावरण में रहें और धूम्रपान न करें। दो हफ्ते से ज्यादा खांसी होने पर विशेषज्ञ से सलाह लें।

लक्षणों पर ध्यान दें –
यदि आंखों में धुंधलापन या अंदरुनी परतों पर सूजन के लक्षण दिखाई दें तो इसे नजरअंदाज न करें। विशेषज्ञ की सलाह ऐसे में लेनी चाहिए।

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