धौलपुर …! बागी, बंदूक और बीहड़ की बदल गई फिजां
धौलपुर…! जी हां, वही धौलपुर जिसका जिक्र आते ही आंखों के सामने आ जाते हैं बागी, बंदूक और बीहड़। प्रदेश के किसी कोने में बैठे व्यक्ति के जेहन में धौलपुर का मतलब ही बीहड़ और डकैत समाया हुआ है। आखिर हो भी क्यों नहीं, चम्बल घाटी में मीलों दूर तक फैले बीहड़ और डांग क्षेत्र वर्षों से डकैतों की शरणस्थली रहे हैं। समीपवर्ती मध्यप्रदेश से सटे चम्बल के बीहड़ों से निकला इनका आतंक यहीं तक सीमित नहीं था। इनके नाम का खौफ राज्य भर में फैला था। हत्या, लूटपाट, अपहरण इनके लिए आए दिन की बात थी। इनके भय से लोग यहां आने से डरते थे। रात में घरों से बाहर नहीं निकलते थे। …लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। यहां की आबोहवा में अब डकैत शब्द विरले ही सुनाई देते हैं। समय के साथ और पुलिस के इनके खिलाफ लगातार चलाए गए अभियानों में इनकी धरपकड़ ने धौलपुर के साथ जुड़े इनके खौफ को खत्म सा कर दिया है। वहीं कुछ वर्षों में यहां बने नेशनल हाइवे ने भी जिले की पहचान बदलने में काफी योगदान दिया है। धौलपुर से करौली जाने के लिए पहले जंगलों व बीहड़ों से गुजरने वाले रास्तों पर आए दिन होने वाली लूटपाट-हत्या की वारदात पर अब हाइवे बनने से विराम सा लग गया है। पहले इस रास्ते पर लोग रात में गुजरने से खौफ खाते थे, लेकिन अब यह क्षेत्र वाहनों की आवाजाही से रात के अंधेरे में भी आबाद रहने लगा है। इसका मुख्य श्रेय जाता है बीते कुछ वर्षों में पुलिस द्वारा इनके खिलाफ कार्रवाई को, जिसके चलते गत लगभग साढ़े छह वर्ष में चलाए गए अभियानों में लगभग 136 डकैत गिरफ्त में आ चुके हैं।
इससे जहां इनका खौफ कम हुआ है, वहीं इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी अब चैन की नींद सोने लगे हैं। अभियान के आंकड़ों पर नजर डाले तो वर्ष 2012 में 14 दस्यु गिरफ्तार किए गए, एक ने आत्मसमर्पण किया वहीं दो पुलिस मुठभेड़ मे मारे गए। वर्ष 2013 में 30 और वर्ष 2014 में 40 दस्यु, 2015 में 28 दस्यु, 2016 में 13 दस्यु और 2017 में अगस्त माह तक 10 दस्यु गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इस तरह बीहड़ों से अब डकैतों का लगभग सफाया हो चुका है। हालांकि कुछ अभी बीहड़ों में मौजूद हैं, लेकिन पुलिस के लगातार अभियान की वजह से अब खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। पुलिस कार्रवाई के दौरान दस्युओं से भारी मात्रा में अवैध हथियार व जिंदा कारतूस भी बरामद किए गए हैं। देखा जाए तो समय के साथ दस्यु और उनके परिजनों की सोच में भी परिवर्तन आया है।ये लोग भी अब समाज की मुख्यधारा में जुड़ चुके हैं या जुडऩा चाहते हैं। कई दस्यु जहां सजा काटकर सीधा सादा जीवन यापन कर रहे हैं वहीं ये अन्य दस्युओं के लिए भी प्रेरणा साबित हो रहे हैं। कुछ दस्यु समाज हित में भी आगे आए हैं, जिनके उनकी छवि में परिवर्तन आया है। उनके परिजनों का भी मानना है कि इससे इनकी आने वाली पीढ़ी पर भी सकारात्मक संदेश जाएगा और डकैतों की शरणस्थली के रूप में बदनाम रहा धौलपुर जिला इस कालिख को मिटा पाएगा।
धौलपुर…! जी हां, वही धौलपुर जिसका जिक्र आते ही आंखों के सामने आ जाते हैं बागी, बंदूक और बीहड़। प्रदेश के किसी कोने में बैठे व्यक्ति के जेहन में धौलपुर का मतलब ही बीहड़ और डकैत समाया हुआ है। आखिर हो भी क्यों नहीं, चम्बल घाटी में मीलों दूर तक फैले बीहड़ और डांग क्षेत्र वर्षों से डकैतों की शरणस्थली रहे हैं। समीपवर्ती मध्यप्रदेश से सटे चम्बल के बीहड़ों से निकला इनका आतंक यहीं तक सीमित नहीं था। इनके नाम का खौफ राज्य भर में फैला था। हत्या, लूटपाट, अपहरण इनके लिए आए दिन की बात थी। इनके भय से लोग यहां आने से डरते थे। रात में घरों से बाहर नहीं निकलते थे। …लेकिन अब सब कुछ बदल चुका है। यहां की आबोहवा में अब डकैत शब्द विरले ही सुनाई देते हैं। समय के साथ और पुलिस के इनके खिलाफ लगातार चलाए गए अभियानों में इनकी धरपकड़ ने धौलपुर के साथ जुड़े इनके खौफ को खत्म सा कर दिया है। वहीं कुछ वर्षों में यहां बने नेशनल हाइवे ने भी जिले की पहचान बदलने में काफी योगदान दिया है। धौलपुर से करौली जाने के लिए पहले जंगलों व बीहड़ों से गुजरने वाले रास्तों पर आए दिन होने वाली लूटपाट-हत्या की वारदात पर अब हाइवे बनने से विराम सा लग गया है। पहले इस रास्ते पर लोग रात में गुजरने से खौफ खाते थे, लेकिन अब यह क्षेत्र वाहनों की आवाजाही से रात के अंधेरे में भी आबाद रहने लगा है। इसका मुख्य श्रेय जाता है बीते कुछ वर्षों में पुलिस द्वारा इनके खिलाफ कार्रवाई को, जिसके चलते गत लगभग साढ़े छह वर्ष में चलाए गए अभियानों में लगभग 136 डकैत गिरफ्त में आ चुके हैं।
इससे जहां इनका खौफ कम हुआ है, वहीं इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी अब चैन की नींद सोने लगे हैं। अभियान के आंकड़ों पर नजर डाले तो वर्ष 2012 में 14 दस्यु गिरफ्तार किए गए, एक ने आत्मसमर्पण किया वहीं दो पुलिस मुठभेड़ मे मारे गए। वर्ष 2013 में 30 और वर्ष 2014 में 40 दस्यु, 2015 में 28 दस्यु, 2016 में 13 दस्यु और 2017 में अगस्त माह तक 10 दस्यु गिरफ्तार किए जा चुके हैं। इस तरह बीहड़ों से अब डकैतों का लगभग सफाया हो चुका है। हालांकि कुछ अभी बीहड़ों में मौजूद हैं, लेकिन पुलिस के लगातार अभियान की वजह से अब खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं। पुलिस कार्रवाई के दौरान दस्युओं से भारी मात्रा में अवैध हथियार व जिंदा कारतूस भी बरामद किए गए हैं। देखा जाए तो समय के साथ दस्यु और उनके परिजनों की सोच में भी परिवर्तन आया है।ये लोग भी अब समाज की मुख्यधारा में जुड़ चुके हैं या जुडऩा चाहते हैं। कई दस्यु जहां सजा काटकर सीधा सादा जीवन यापन कर रहे हैं वहीं ये अन्य दस्युओं के लिए भी प्रेरणा साबित हो रहे हैं। कुछ दस्यु समाज हित में भी आगे आए हैं, जिनके उनकी छवि में परिवर्तन आया है। उनके परिजनों का भी मानना है कि इससे इनकी आने वाली पीढ़ी पर भी सकारात्मक संदेश जाएगा और डकैतों की शरणस्थली के रूप में बदनाम रहा धौलपुर जिला इस कालिख को मिटा पाएगा।