धर्म-कर्म

Friday Puja Path: इन त्रिदेवियों की पूजा से चमकता है भाग्य!

ज्योतिष में शुक्र को भाग्य का कारक ग्रह…

Jul 02, 2021 / 11:21 am

दीपेश तिवारी

Friday Puja path

हिंदू धर्म में 33 कोटी देवी-देवताओं का जिक्र मिलता है, ऐसे में हर देवी देवता का कुछ खास कार्य निश्चित माना गया है। जैसे Adi Panch dev ब्रह्मा को जगत निर्माता तो भगवान विष्णु को जगत का पालनहार वहीं भगवान शिव को संहार का देवता माना गया है। इसी प्रकार Worship of goddesses देवियों में माता सरस्वती को विद्या की देवी तो देवी लक्ष्मी को धन-धान्य की देवी माना जाता है। ऐसे में weekly day puja सप्ताह के हर दिन को भी अलग अलग देवी-देवता को समर्पित किया गया है।

सप्ताह में दिनों में जहां मंगलवार को हनुमान जी के अलावा देवी दुर्गा की पूजा का भी विधान है, वहीं शनिवार देवी मां काली की पूजा के लिए विशेष माना गया है। Friday Day of Goddesses शुक्रवार का दिन मुख्य रूप से धन-धान्य की devi lakshmi देवी लक्ष्मी का माना जाता है, लेकिन इसके साथ ही अन्य देवियों का भी इस दिन पूजन विधान माना गया है। दरअसल एक ओर जहां ज्योतिष में शुक्र को भाग्य का कारक ग्रह माना जाता है, वहीं इस दिन की कारक देवी माता लक्ष्मी मानी गईं हैं।

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इस दिन देवी लक्ष्मी के अलावा mata Durga माता दुर्गा व संतोषी माता की Worship of tridevis पूजा का भी विधान है। मान्यता के अनुसार इन Friday: The day of 3 Goddess त्रिदेवियों की पूजा से मिले आशीर्वाद से जातक का भाग्य चमकता है। वहीं इस दिन मिठाई के दान का भी विशेष महत्व माना गया है।

मान्यता के अनुसार लगातार 16 शुक्रवार के दिन व्रत रखना बेहद फायदेमंद साबित होता है। वहीं इस दिन गुलाबी, लाल व श्वेत वस्त्र पहनना भी शुभ माना जाता है। यह दिन Mata Laxmi देवी लक्ष्मी के अलावा शक्ति की देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए भी बेहद खास माना गया है।

शुक्रवार का व्रत कई कारणों से रखा जाता है। इसमें जहां कुछ लोग खुशहाल जीवन के लिए, तो वहीं कुछ संतान की प्राप्ति के लिए और कुछ विवाह की आशा से व्रत रखते हैं। मान्यता के अनुसार बाधाओं को दूर करने के लिए शुक्रवार का व्रत बहुत लाभकारी है।

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Thursday Special

 

भाग्य के कारक ग्रह यानि शुक्र के इस दिन अपनी भाग्य वृद्धि के लिए धन व सम्‍पन्‍नता की देवी मां लक्ष्‍मी की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुुसार मां लक्ष्मी की पूजा मध्य रात्रि को सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। मां लक्ष्मी की पूजा उसी प्रकार से की जानी चाहिए, जैसे वह गुलाबी कमल के पुष्प पर बैठी हों और उनके हाथों से धन बरस रहा हो।

मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सबसे अच्छा होता है। माना जाता है कि माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप स्फटिक की माला से करना चाहिए, ऐसा करने से वह मंत्र तुरंत प्रभावशाली हो जाता है।

इसके अतिरिक्त इस दिन देवी लक्ष्मी के ही एक रूप वैभव लक्ष्मी का व्रत भी इस दिन विवाह की कामना या सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

 

माता लक्ष्मी के अलावा शुक्रवार का दिन माता दुर्गा का भी माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन मां दुर्गा की पूजा और उनके मंत्रों का जाप करना विशेष महत्व रखता है। इस दिन की शुरुआत ‘ऊं श्री दुर्गाय नमः’ जाप के साथ की जानी चाहिए।

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friday flower

वहीं स्नानादि नित्यकर्म के बाद दुर्गा जी की पूजा के लिए सबसे पहले माता दुर्गा की मूर्ति में उनका आवाहन करें। अब उस मूर्ति को सबसे पहले जल से, फिर पंचामृत से और अंत में पुन: जल से स्नान कराएं। इसके बाद माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद उन्‍हें आसन पर स्‍थापित कर आभूषण और पुष्पमाला पहनाएं।

अब इत्र अर्पित कर उन्हें कुमकुम का तिलक करें। इसके बाद धूप व दीप के साथ अष्टगंध अर्पित करें। मां दुर्गा को लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें। 11 या 21 चावल चढ़ाएं और श्रद्धानुसार घी या तेल के दीपक से आरती करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। पूजन के पूरा होने पर नारियल का भोग अवश्‍य लगाएं। 10-15 मिनट के बाद नारियल को फोड़े और उसका प्रसाद देवी को अर्पित करने के बाद सबमें बांटने के पश्चात स्‍वयं भी ग्रहण करें।

देवी दुर्गा की पूजा के लिए देवी दुर्गा की मूर्ति के सामने एक लाल कपड़े में लाल चंदन, गुड़हल का लाल फूल,कुछ पैसे आदि रखकर हर शुक्रवार दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। माना जाता है ऐसा लगातार करने से जीवन में कोई भी परेशानी आपके सामने टिक नहीं पाती।

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शुक्रवार के दिन देवी के संतोषी माता स्‍वरूप की पूजा सुख-सौभाग्य की कामना से की जाती है। इसी के तहत संतोषी माता के 16 शुक्रवार व्रत करने की मान्यता है। संतोषी माता की पूजा के तहत शुक्रवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूरी कर लें। इसके बाद स्नानादि करके घर में किसी पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

यहां उनके सामने जल से भरा एक कलश रखें और उस के ऊपर एक कटोरे में गुड़ चना रख दें। इस दौरान माता के सामने घी का दीपक जलाएं, और उन्हें अक्षत, फ़ूल, इत्र, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें। देवी को गुड़ चने का भोग लगाएं और हाथ में गुड़ चना लेकर कथा पढ़ कर आरती करें।

कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ चना गाय को खिला दें। जबकि कलश पर रखे गुड़ चने का प्रसाद सभी को बांटें। वहीं कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़ने के बाद बचे हुए जल को तुलसी की क्यारी में डाल दें। ध्‍यान रहे इस व्रत को करने वाले को ना तो खट्टी चीजें हाथ लगाना है और ना ही खाना है।

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