विश्वेश्वर व्रत कथा (Vishweshwar Vrat Katha)
धार्मिक कथाओं के अनुसार कुथार राजवंश में एक शूद्र राजा रहते थे। जिनको लोग कुंडा राजा के नाम से जानते थे। एक बार कुंडा राजा ने भार्गव मुनि को अपने राज्य में आने का निमंत्रण भेजा था। लेकिन मुनि भार्गव ने निमंत्रण को अस्वीकर करते हुए कहा कि आपके राज्य में मंदिरों और पवित्र नदियों की कमी है। आपके राज्य में कोई ऐसा पवित्र स्थान नहीं है जहां ऋषि-मुनि पूजा पाठ और ध्यान कर सकें। मुनि भार्गव ने आगे कहा कि कार्तिक पूर्णिमा से पहले भीष्म पंचक के पांच दिन के त्यौहार पर तीसरे दिन पूजा करने के लिए उचित स्थान की आवश्यकता होती है। जिसका उन्हें राजा कुंडा के राज्य में अभाव लग रहा है।शिव ने राजा को दिया वरदान (Shiv Ne Raj Ko Diya Vardan)
राजा कुंडा को जब इस बात का पता लगा तो वह इस बात से बहुत परेशान हुए। तभी राजा ने फैसला किया कि अब वह राज पाठ छोड़कर गंगा किनारे तपस्या करने के लिए जाएंगे। और भगवान शिव की आराधाना करेंगे। जब राजा गंगा किनारे पहुंचे तो उन्होंने नदी किनारे एक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया। राजा कुंडा ने यह यज्ञ भगवान शिव को साक्षी मानकर किया था। भगवान शिव राजा की तपस्या से प्रसन्न हुए और राजा से वरदान मांगने को कहा। तब राजा ने भगवान शंकर से उनके राज्य में रहने की इच्छा जताई। जिसे भगवान भोलेनाथ ने स्वीकार किया।येलुरु विश्वेश्वर मंदिर (Yeluru Vishweshwar Mandir)
धार्मिक मान्यता है कि उस दिन से भगवान शंकर राजा कुंडा के राज्य में एक कंद के पेड़ में रहने लगे थे। एक दिन एक आदिवासी स्त्री जंगल में अपने खोए हुए बेटे को ढूंढने आई थी। जो वहीं जंगल में खो गया था। माना जाता है कि उस स्त्री ने वहां कंद के वृक्ष पर अपनी तलवार से प्रहार कर दिया। जिसके बाद उस वृक्ष से रक्त बहने लगा। जब स्त्री की नजर बहते रक्त पर पड़ी तो स्त्री ने समझा कि वह कंद नहीं बल्कि उसका पुत्र है। जिसके बाद वह जोर जोर से अपने बेटे का नाम पुकारने लगी। पुत्र का नाम ‘येलु’था। तभी उस स्थान पर भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए और तभी से यहां पर बने मंदिर को येलुरु विश्वेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।शिवलिंग पर तलवार के निशान (Shivling Par Talvar Ke Nishan)
कर्नाटक में यह मंदिर महाथोबारा येलुरुश्री विश्वेश्वर मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि उस आदिवासी स्त्री की तलवार से किए गए प्रहार के निशान आज भी मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर बने हुए हैं। यह भी माना जाता है कि कुंडा राजा ने प्रहार के स्थान पर नारियल पानी डाला था तभी कंद का खून बहना बंद हुआ था। इसलिए आज भी यहां भगवान शिव को नारियल पानी या नारियल का तेल चढ़ाने का विधान है। ये भी पढ़ें-Vishweshwar Vrat 2024: जानिए कब है विश्वेश्वर व्रत और क्या है इसका महत्व डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।