विश्वकर्मा पूजा विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन उद्यमियों कारीगरों को शुभ मुहूर्त में देवशिल्पी और कल कारखानों की मशीनों उपकरणों की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए उस विधि का ध्यान रखना चाहिए। 1. कल कारखानों और उपकरणों-औजारों की साफ सफाई करें, और एक लकड़ी की चौकी पर विश्वकर्माजी के लिए आसन बनाएं। 2. विश्वकर्मा जी का पौराणिक चित्र वहां स्थापित करें, तस्वीर न मिले तो ईश्वर के नव सृजन अभियान के प्रतीक लाल मशाल को भी स्थापित कर सकते हैं।
3. कुशा से गंगाजल छिड़ककर पवित्रीकरण करें और तिलक अर्पित करें।
3. कुशा से गंगाजल छिड़ककर पवित्रीकरण करें और तिलक अर्पित करें।
4. पृथ्वी पूजन करें, भूमि के प्रति श्रद्धाभिव्यक्ति के साथ ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् मन्त्र बोलकर पृथ्वी वंदन कराए। अंत में एतत् कर्मप्रधान श्रीविश्वकर्मणे नमः बोलें।
अथवा षट्कर्म से लेकर रक्षाविधान तक यज्ञका कर्मकाण्ड कराएं, विशेष पूजन, संभव हो तो सभी के हाथ में अक्षत पुष्प दें, फिर विश्वकर्मा देव का आवाहन करें।
अथवा षट्कर्म से लेकर रक्षाविधान तक यज्ञका कर्मकाण्ड कराएं, विशेष पूजन, संभव हो तो सभी के हाथ में अक्षत पुष्प दें, फिर विश्वकर्मा देव का आवाहन करें।
ॐ कंबासूत्राम्बुपात्रं वहति करतले पुस्तकं ज्ञानसूत्रम्। हंसारूढस्त्रिनेत्रः शुभमुकुटशिरा सर्वतो वृद्धकायः। त्रैलोक्यं येन सृष्टं सकलसुरगृहं, राजहर्म्यादि हर्म्यं देवोऽसौ सूत्रधारो जगदखिलहितः पातु वो विश्वकर्मन्।। भो विश्वकर्मन्! इहागच्छ इह तिष्ठ, अत्राधिष्ठानं कुरु- कुरु मम पूजां गृहाण।।
5. फिर यह प्रार्थना करें
नमामि विश्वकर्माणं द्विभुजं विश्ववन्दितम्। गृहवास्तुविधातारं महाबलपराक्रमम्।। प्रसीद विश्वकर्मस्त्वं शिल्पविद्याविशारद। दण्डपाणे! नमस्तुभ्यं तेजोमूर्तिधर प्रभो! फिर पुस्तक , पैमाना, जलपात्र , सूत्र- धागा को आसन पर स्थापित करें और इन पर क्रमशः पुष्प- अक्षत चढ़ाएं और नीचे लिखी प्रार्थना को पढ़ें
नमामि विश्वकर्माणं द्विभुजं विश्ववन्दितम्। गृहवास्तुविधातारं महाबलपराक्रमम्।। प्रसीद विश्वकर्मस्त्वं शिल्पविद्याविशारद। दण्डपाणे! नमस्तुभ्यं तेजोमूर्तिधर प्रभो! फिर पुस्तक , पैमाना, जलपात्र , सूत्र- धागा को आसन पर स्थापित करें और इन पर क्रमशः पुष्प- अक्षत चढ़ाएं और नीचे लिखी प्रार्थना को पढ़ें
प्रार्थना- हे विश्वकर्मा प्रभो! हमें सृजन का ज्ञान दें, अवसर दें, और ऐसी समझदारी दें, ताकि हम उसका लाभ उठा सकें और पुस्तक स्पर्श करें और मन ही मन प्रार्थना करें कि हमें सृजन का उत्साह दें और ऐसी ईमानदारी दें कि हम उसके साथ न्याय कर सकें और पैमाना का स्पर्श करें फिर प्रार्थना करें हमें शक्ति- साधना दें और ऐसी जिम्मेदारी दें कि हम उनका सदुपयोग कर सकें और पात्र का स्पर्श करें फिर प्रार्थना करें कि हमें वह कौशल और उसे वहन करते रहने की बहादुरी प्रदान करें और सूत्र का स्पर्श करें।
6. धूप, दीप, अगरबत्ती, फल, मिठाई अर्पित करें। 7. फिर विश्वकर्मन् नमस्तेऽस्तु, विश्वात्मन् विश्वसम्भवः। अपवर्गोऽसि भूतानां, पंचानां परतः स्थितः महा.शान्ति मंत्र पढ़कर चारों प्रतीकों सहित विश्वकर्मा जी का पञ्चोपचार पूजन करें, बाद में अग्निस्थापन से हवन का क्रम सम्पन्न करें अथवा दीपयज्ञ करें। दीपयज्ञ- 5 या 24 दीपक जलाकर दीपयज्ञ के साथ 7 या 11 बार गायत्री मन्त्र के साथ आहुति दें। विशेष आहुति- एक या तीन आहुतियां नीचे लिखे मंत्र से दें
ॐ विश्वकर्मन् हविषा वावृधानः स्वयं यजस्व पृथिवीमुत द्याम्। मुह्यन्त्वन्ये अभितः सपत्नाऽ इहास्माकं मघवा सूरिरस्तु स्वाहा। इदं विश्वकर्मणे इदं न मम।। कोई सृजन सङ्कल्प लेने का आग्रह करके पूर्णाहुति मन्त्र बोलें। आरती करें और प्रसाद बांटें।