इस बार दिन मंगलवार 29 मई 2018, को अधिक मास की पूर्णिमा है । परंतु पूर्णिमा तिथि सोमवार, 28 मई को रात्रि 8 बजकर 40 मिनट से पूर्णिमा तिथि लग जाएगी, जो कि 29 मई को सायं 7 बजकर 49 मिनट तक रहेगी । इस दिन महिलाएं सुखद वैवाहिक जीवन की कामना से वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करके अखंड सुहाग की कामना करती हैं ।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के संबंध में प्रचलित कथा है कि सावित्री ने अपन् मृत पति सत्यवान को यमराज से जीत लिया था, कहा जाता है कि सत्यवान का मृत शरीर वटवृक्ष के नीचे ही पड़ा था और वहीं उसे पुनः जीवनदान मिला था तब से ही सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन को वट सावित्री के रूप में मनाकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है । इस दिन महिलाएं सुबह स्नान आदि कर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करती है तथा वट वृक्ष की पूजा करने के बाद ही वे जल ग्रहण करती हैं ।
– पूजन में महिलाएं 24 बरगद फल,
– आटे में गुड़ मिलाकर बनी हुई 24 पूरियां
– एक लोटा जल
– पूजन की थाली में हल्दी-रोली, फल-फूल, धूप-दीप, मिठाई
– कच्चे सूत
– चने के 24 दाने
अब सुहागिन स्त्रियां बरगद 24 फलों में से 12 फल और 24 पूरियों में से 12 पूरियां अपने आंचल में रख लें, सबसे पहले सभी पूजन सामग्रियों से एक एक करके अर्पित करें, अब हाथ में चने का पौधा व कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की 12 परिक्रमा करें । हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाते चले और वट वृक्ष के तने पर सूत लपेटती रहे । परिक्रमा पूरी होने के बाद में बचे हुए 12 बरगद के फल और 12 पूरियां अखंड सौभाग्यवती की भावना से वटवृक्ष पर चढ़ा दें और सत्यवान सावित्री की कथा का पाठ करें । पाठ समाप्त होने के बाजद 12 तार (धागा) वाली एक माला को वृक्ष पर चढ़ावें और एक को अपने गले में डाले । छ: बार माला को वृक्ष से बदले, बाद में एक माला चढ़ी रहने दे और एक पहन लेवें ।
पूजा समाप्त होने के बाद महिलायें एक दूसरे की मांग भरने के पश्चात, 11 चने व वृक्ष की लाल रंग की थोड़ी सी कली तोड़कर जल के साथ निगले, इस तरह अपना व्रत समाप्त करें । अंत में किसी योग्य ब्राह्मण या फिर किसी गरीब जरूरतमंद को श्रद्धानुसार दान-दक्षिणा अवश्य दवें तथा प्रसाद के रूप में चने व गुड़ का बाटें ।