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छत्तीसगढ के आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले के एक गांव के युवा अपनी प्रेयसियों को पाने के लिए गांव के ही एक उजाड़ से मंदिर माता मुकड़ी मावली (वन राक्षसी) का रुख करते हैं। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर छिंदनार ग्राम से चार किमी की दूरी पर एक टेकरी में माता मुकड़ी मावली का मंदिर है।
छत्तीसगढ के आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले के एक गांव के युवा अपनी प्रेयसियों को पाने के लिए गांव के ही एक उजाड़ से मंदिर माता मुकड़ी मावली (वन राक्षसी) का रुख करते हैं। दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर छिंदनार ग्राम से चार किमी की दूरी पर एक टेकरी में माता मुकड़ी मावली का मंदिर है।
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जनश्रुतियों के अनुसार माता मुकड़ी मावली मंदिर की माता को युवा अपनी प्रेमिका की तस्वीर तथा उसके कपडे के टुकड़े दिखाते हुए पूजा करते हैं तथा पास स्थित पत्थर के नीचे दबा देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से मां प्रसन्न होकर प्रेमी-प्रेमिका का मिलन करा देती है।
मन्नत पूरी होने पर भोग भी लगाना होता है
मन्नत पूरी होने पर देवी को भोग में बकरा, मुर्गी व बत्तख चढ़ाई जाती है। यहां के पुजारी मनोहर (75) बताते हैं कि मंदिर में केवल युवकों को ही प्रवेश दिया जाता है। वे दूर से देवी की पूजा कर पुजारी के जरिए अपनी बात देवी तक पहुंचाते हैं। युवकों को पूजा के लिए प्रेयसी की तस्वीर व उसके कपड़े का टुकड़ा लाना होता है। उन्होंने बताया कि देवी की पूजा के लिए कोई विशेष दिन तय नहीं है। आषाढ़ में यहां मेला लगता है। हालांकि इन दिनों वेलेंटाइन डे के बढ़ते क्रेज को देखते हुए वेलेंटाइन डे पर भी काफी युवा पूजा करने आते हैं।
मन्नत पूरी होने पर देवी को भोग में बकरा, मुर्गी व बत्तख चढ़ाई जाती है। यहां के पुजारी मनोहर (75) बताते हैं कि मंदिर में केवल युवकों को ही प्रवेश दिया जाता है। वे दूर से देवी की पूजा कर पुजारी के जरिए अपनी बात देवी तक पहुंचाते हैं। युवकों को पूजा के लिए प्रेयसी की तस्वीर व उसके कपड़े का टुकड़ा लाना होता है। उन्होंने बताया कि देवी की पूजा के लिए कोई विशेष दिन तय नहीं है। आषाढ़ में यहां मेला लगता है। हालांकि इन दिनों वेलेंटाइन डे के बढ़ते क्रेज को देखते हुए वेलेंटाइन डे पर भी काफी युवा पूजा करने आते हैं।