वैकुंठ चतुर्दशी धार्मिक मान्यताएं (Vaikuntha Chaturdashi religious beliefs)
धार्मिक कथाओं के अनुसार एक बार नारद ऋषि ने स्वयं भगवान श्री हरि से पूछा कि साधु-संतों को तो आपका ध्यान करने से मृत्यु के बाद वैकुण्ठ की प्राप्ति हो जाती है। लेकिन क्या सामान्य मनुष्य को मरणोपरांत मोक्ष मिल सकता है? तब भगवान विष्णु ने वैकुंठ चतुर्दशी की पूरी महिमा का वर्णन नारद ऋषि से किया था। मान्यता है कि कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि पर भगवान विष्णु के साथ भगवान शिव की आराधना करने से भक्तों को लाभकारी फल मिलते हैं। इस दिन शिव मंदिर और विष्णु मंदिर में जाने से व्यक्ति को कई गुना अधिक पुण्य फल मिलते हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी पर निशिताकाल में भगवान विष्णु की पूजा करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन काशी के मंदिरों में भगवान शिव और विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है। कथा से जानते हैं बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी कथा (Vaikuntha Chaturdashi Katha)
शिव पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने एक हजार कमल के फूलों से भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया था। इसके लिए श्री हरि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी पर भगवान शिव की पूजा के लिए वाराणसी गए। यहां भगवान शिव को कमल पुष्प अर्पित करते समय भगवान विष्णु को पता चला कि अंतिम फूल वहां नहीं है।भगवान विष्णु के नेत्रों की तुलना कमल से की जाती है, इसलिए उन्होंने अपनी पूजा के संकल्प को पूरा करने के लिए अपना एक नेत्र निकाला और अंतिम फूल के स्थान पर भगवान शिव को अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु की इस भक्ति को देखकर भगवान शिव अत्यधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को उनका नेत्र वापस कर दिया। साथ ही उन्हें सुदर्शन चक्र भी भेंट किया जो भगवान विष्णु के सर्वाधिक शक्तिशाली और अलौकिक अस्त्रों में से एक माना जाता है।
बैकुंठ चतुर्दशी पर पूजा का नियम (Vaikuntha Chaturdashi Puja Niyam)
बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु की पूजा निशीथकाल (मध्य रात्रि) में की जाती है। इस समय भक्तगण विष्णु सहस्रनाम अर्थात भगवान विष्णु के एक हजार नामों का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करते हैं। कुछ भक्त वैकुंठ चतुर्दशी पर अलग-अलग समय भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त निशीथकाल को वरीयता देते हैं, जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदयकाल को मान्यता देते हैं जो प्रातःकाल का समय होता है।शिवभक्त इस दिन वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदयकाल में स्नान करते हैं। कार्तिक चतुर्दशी पर इस पवित्र स्नान को मणिकर्णिका स्नान के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में विशेष आदर के साथ विराजमान कर पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विश्वनाथ मंदिर बैकुंठ के समान पवित्र हो जाता है। इस समय दोनों देवताओं की इस प्रकार विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है जैसे वे परस्पर एक-दूसरे की पूजा कर रहे हों। भगवान विष्णु शिव जी को तुलसीदल अर्पित करते हैं और भगवान शिव, विष्णु जी को बेलपत्र भेंट करते हैं।
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