कहते हैं कि मन इतना चंचल होता है कि यदि वह नियंत्रण में न रहे तो व्यक्ति अशांत महसूस करने लगता है। ये अशांति मन में एक पल में आने वाले सैकड़ों सवालों के कारण होती है। और यह अशांति तब तक बनी रहती है, जब तक कि व्यक्ति को मन में चल रहे सवालों का जवाब नहीं मिल जाता। ऐसे में तो यही लगता है कि मन को शांत रखना बेहद जरूरी है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर हम मन को शांत कैसे कर सकते हैं? गौतम बुद्ध के मुताबिक मन को शांत करने के लिए उसे समझना जरूरी है। पत्रिका.कॉम इस लेख में आपको बता रहा है गौतम बुद्ध के बताए वे तरीके, जिनसे मन को समझना आसान होगा और हम उस पर कंट्रोल करने का प्रयास कर सकेंगे…
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मन को जानने से जुड़ी है गौतम बुद्ध की ये कहानी है पहला चरण
एक बार एक व्यक्तिगौतम बुद्ध के पास गया और पूछा कि, मन को नियंत्रति करने का पहला चरण क्या है? बुद्ध कहते हैं- अपने मन को समझने का पहला चरण है, इसके द्वारा दिए गए लालच की व्यर्थता को देखना-समझना। दरअसलजब मन अंशात होता है तो, कई तरह के लालच देता है। और जिसने मन द्वारा दिए इन लालचों को पहचान लिया, समझ लो कि उसने मन को समझने का पहला चरण समझ लिया। फिर व्यक्ति बुद्ध से पूछता है कि, लेकिन हमें यह कैसे पता चलेगा हमारा मन हमें लालच दे रहा है और वह लालच व्यर्थ है? इसका जवाब देते हुए बुद्ध कहते हैं- ‘अनुभव से।’
मनुष्य मन के लालच से जिस कार्य को अतिपूर्वक करता है, उसमें उसे हानि ही होती है और हानि के बाद ही उसे अनुभव होता है। जैसे, जिसने वास्तव में यह देख लिया कि नशा करना केवल दुख है, वह नशा मुक्त होना शुरू कर देगा। वहीं जिसने जान लिया कि ईष्र्या से खुद का नाश होता है, वह ईष्र्या से मुक्त हो जाएगा। मन को समझने का यही पहला चरण है।
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मन को जानने का दूसरा चरण
व्यक्ति बुद्ध से पूछता है, यदि व्यक्ति पहले चरण से यह जान जाता है कि वह मन द्वारा दिए लालचों के कारण दुखी है, तो फिर दूसरा चरण क्या है? बुद्ध कहते हैं- ‘खोज पर निकलना’। दूसरे चरण के लिए ऐसे व्यक्ति की खोज पर निकलना होगा, जो पहले ही अपने मन को जानकर इससे मुक्त हो चुका है। दरअसलएक ऐसा ही व्यक्ति तुम्हारा मार्गदर्शन कर पाएगा।
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मन को जानने का तीसरा चरण
व्यक्ति कहता है कि लेकिन ऐसे व्यक्ति की पहचान कैसे होगी? बुद्ध कहते हैं- यही तीसरा चरण है। ‘सुनना’ ही अपने मन को समझने का तीसरा चरण है। व्यक्ति कहता है, क्या इसे देखकर पता नहीं किया जा सकता। बुद्ध कहते हैं- देखने में कोई व्यक्ति बहुत शांत और अच्छा लग सकता है। लेकिन उसके मन के भीतर क्या है, यह उसके शब्दों से ही पता चल सकता है। लेकिन किसी की बातों पर तब तक विश्वास नहीं करना चाहिए, जब तक कि वह तुम्हारे विवेक की कसौटी पर खरा न उतरे।
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मन को जानने का चौथा चरण
गौतम बुद्ध कहते हैं कि ‘कर्म’ ही मन को समझने का चौथा चरण है। खुद को जानने के लिए सही दिशा में कर्म करना जरूरी है। लेकिन कर्म करते हुए व्यक्ति हर बार दो गलतियां करता है। पहली गलती यह कि शुरुआत ही नहीं करना और दूसरी गलती यह कि पूरा रास्ता तय न करना। इन दोनों ही गलतियों के पीछे हमारा मन होता है।
व्यक्ति अपने कर्म को पूरा इसलिए नहीं कर पाता, क्योंकि वह सोचता है कि मैं कल से शुरुआत करूंगा तो, कोई यह सोचता है कि मैं असफल हो जाऊंगा। इन गलतियों का मुख्य कारण है जागरुकता की कमी। इसके बिना मन व्यक्ति को सही दिशा में चलने ही नहीं देता।
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मन को जानने का पांचवां चरण
गौतम बुद्ध कहते हैं कि मन को जानने और समझने का पांचवा चरण है ‘जागरुकता’। इसीलिए हर कार्य को जागरुकता के साथ करें। बिना जागरुकता के साथ किया गया कार्य या फिर जिया गया क्षण मृत्यु के समान है। व्यक्ति बुद्ध से पूछता है- अपने जागरूकता के स्तर को कैसे बढ़ाया जा सकता है? बुद्ध ने जवाब दिया, ‘ध्यान’ से।
मन को जानने का छठा और अंतिम चरण
ध्यान ही मन को जानने, समझने और नियंत्रति करने का अंतिम चरण है। यानी ‘ध्यान’ ही वह नाव है, जिसपर बैठ मन रूपी नदी को पार किया जा सकता है। जिस व्यक्ति ने इन शुरुआती 5 चरणों से मन को जान लिया, उसने अपन मन को जीत लिया, उस पर काबू पा लिया।