परंपरा की बात करें तो भारत में लोग एक दो नहीं 80 से अधिक तरह से तिलक (टीके) लगाए जाते हैं। इसमें 64 तरीके के तिलक वैष्णव साधु लगाते हैं तो शैव, शाक्त और अन्य मतों के लोग भी अपने मत के अनुसार तिलक लगाते हैं। इससे आत्मशक्ति, एकाग्रता, संयम, शांति और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
किस चीज का लगाना चाहिए तिलकः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हमेशा पर्वत के नोक, नदी तट की मिट्टी, तीर्थ, चींटी की बांबी, तुलसी के मूल की मिट्टी या गोपी चंदन की मिट्टी, चंदन और कुमकुम से ही करना चाहिए। चंदन भस्म आदि से भी तिलक लगाया जाता है।
शैव परंपरा (भगवान शिव के उपासक) में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। त्रिपुंड भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा है। इसमें भी पंथ बदलने पर अघोरी, कापालिक, तांत्रिक आदि अलग-अलग तरीके से तिलक लगाते हैं। यह काले या लाल रंग का होता है। इसे रोली तिलक भी कहते हैं।
शाक्त परंपरा में तिलक
शक्ति के उपासक खास शैली में तिलक लगाते हैं। ये शैली से ज्यादा तत्व पर ध्यान देते हैं। ये चंदन या कुमकुम की जगह सिंदूर का तिलक लगाते हैं।
ब्रह्म तिलक
आम तौर पर मंदिर के पुजारी और ब्राह्मण यह तिलक लगाते हैं। ब्रह्मदेव की पूजा करने वाले गृहस्थ भी यह तिलक लगाते हैं। यह सफेद रंग की रोली से लगाया जाता है।
वैष्णव परंपरा में तिलक
वैष्णव परंपरा (विष्णु भगवान के उपासक) में तिलक लगाने का खास चलन देखा जाता है। ये भी मत, मठ और गुरु की हिसाब से अलग-अलग तिलक लगाते हैं। वैष्णव परंपरा में 64 तरीके से तिलक लगाया जाता है। ये पीले रंग के गोपी चंदन से लगाया जाता है।
विष्णु स्वामी तिलक
यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है, यह तिलक संकरा होते हुए भौंहों के बीच तक जाता है। ये भी पढ़ेंः बद्रीनाथ धाम कपाट 27 अप्रैल को खुलेंगे, बर्फबारी से चार धाम यात्रा की तैयारियां हो रहीं प्रभावित
लालश्री तिलक
चंदन की दो रेखाओं के बीच कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा होती है। या चंदन का तिलक लगाकर बीच में कुमकुम रख दी जाती है।
श्यामश्री तिलक
यह तिलक कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें गोपी चंदन की रेखाओं के बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।
रामानंद तिलक
विष्णु स्वामी तिलक के बीच कुमकुम से खड़ी रेखा बनाने से रामानंदी तिलक बनता है।
अन्य तिलक
अन्य प्रकार के तिलक में गणपति के उपासक, सूर्य के उपासक, तांत्रिक, कापालिक भिन्न प्रकार के तिलक लगाते हैं। इनकी अपनी-अपनी उपशाखाएं परंपराएं हैं, कई साधु संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।