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माथे पर क्यों लगाते हैं तिलक, जानें अलग-अलग टीकों का महत्व

हिंदू संस्कृति में तिलक (टीका) का बड़ा महत्व है। आम लोगों से साधु संतों तक में तिलक लगाने की परंपरा है और ये कई प्रकार से लगाए जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है हर तरह का तिलक लगाने का एक खास अर्थ होता है तो आइये जानते हैं कितने प्रकार के तिलक लगाए (Tilak Hinduism )जाते हैं…

Apr 01, 2023 / 07:11 pm

Pravin Pandey

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तिलक का अर्थ है शुभ कार्य के लिए माथे पर बनाया जाने वाला चिह्न। शास्त्रों के अनुसार यदि व्यक्ति तिलक नहीं लगाता तो उसके द्वारा किया गया शुभ कार्य फलीभूत नहीं होता। यह दोनों भृकुटी के बीच आज्ञा चक्र पर लगाया जाता है। अन्य स्थानों पर भी तिलक लगाया जाता है। रक्षाबंधन, भैया दूज पर भाइयों को तिलक लगाने की परंपरा है। इसके अलावा पूजा पाठ के बाद भी माथे पर तिलक लगाने का रिवाज भारत में है।

परंपरा की बात करें तो भारत में लोग एक दो नहीं 80 से अधिक तरह से तिलक (टीके) लगाए जाते हैं। इसमें 64 तरीके के तिलक वैष्णव साधु लगाते हैं तो शैव, शाक्त और अन्य मतों के लोग भी अपने मत के अनुसार तिलक लगाते हैं। इससे आत्मशक्ति, एकाग्रता, संयम, शांति और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
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किस चीज का लगाना चाहिए तिलकः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हमेशा पर्वत के नोक, नदी तट की मिट्टी, तीर्थ, चींटी की बांबी, तुलसी के मूल की मिट्टी या गोपी चंदन की मिट्टी, चंदन और कुमकुम से ही करना चाहिए। चंदन भस्म आदि से भी तिलक लगाया जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पुरुषों को चंदन और स्त्री को कुमकुम से ही तिलक माथे पर लगाना चाहिए। तिलक स्थान पर धनंजय प्राण रहता है, इसे जागृत करने के लिए ही तिलक लगाया जाता है। तिलक को अनामिका अंगुली के प्रयोग से लगाया जाता है। वहीं दूसरे को तिलक लगा रहे हैं तो अंगूठे का प्रयोग करें।
शैव परंपरा में तिलक
शैव परंपरा (भगवान शिव के उपासक) में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। त्रिपुंड भगवान शिव के श्रृंगार का हिस्सा है। इसमें भी पंथ बदलने पर अघोरी, कापालिक, तांत्रिक आदि अलग-अलग तरीके से तिलक लगाते हैं। यह काले या लाल रंग का होता है। इसे रोली तिलक भी कहते हैं।

शाक्त परंपरा में तिलक
शक्ति के उपासक खास शैली में तिलक लगाते हैं। ये शैली से ज्यादा तत्व पर ध्यान देते हैं। ये चंदन या कुमकुम की जगह सिंदूर का तिलक लगाते हैं।


ब्रह्म तिलक
आम तौर पर मंदिर के पुजारी और ब्राह्मण यह तिलक लगाते हैं। ब्रह्मदेव की पूजा करने वाले गृहस्थ भी यह तिलक लगाते हैं। यह सफेद रंग की रोली से लगाया जाता है।

वैष्णव परंपरा में तिलक
वैष्णव परंपरा (विष्णु भगवान के उपासक) में तिलक लगाने का खास चलन देखा जाता है। ये भी मत, मठ और गुरु की हिसाब से अलग-अलग तिलक लगाते हैं। वैष्णव परंपरा में 64 तरीके से तिलक लगाया जाता है। ये पीले रंग के गोपी चंदन से लगाया जाता है।

विष्णु स्वामी तिलक
यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है, यह तिलक संकरा होते हुए भौंहों के बीच तक जाता है।

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लालश्री तिलक
चंदन की दो रेखाओं के बीच कुमकुम या हल्दी की खड़ी रेखा होती है। या चंदन का तिलक लगाकर बीच में कुमकुम रख दी जाती है।


श्यामश्री तिलक
यह तिलक कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें गोपी चंदन की रेखाओं के बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।

रामानंद तिलक
विष्णु स्वामी तिलक के बीच कुमकुम से खड़ी रेखा बनाने से रामानंदी तिलक बनता है।


अन्य तिलक
अन्य प्रकार के तिलक में गणपति के उपासक, सूर्य के उपासक, तांत्रिक, कापालिक भिन्न प्रकार के तिलक लगाते हैं। इनकी अपनी-अपनी उपशाखाएं परंपराएं हैं, कई साधु संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।

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