यह एक ऐसी गुफा है जिसका वर्णन स्कंदपुराण की मानसखंड में भी किया गया है। वेद व्यास के अनुसार यहां देवी – देवताओं का आराम स्थान था! इस गुफा के भीतर देवलोक सरीखे रहस्य और रोमांच से भरे सात तलों वाली दूसरी ही दुनिया है, यहां स्वर्ग का दरवाजे के पास ही दुनिया के अंत का संकेत देने वाला एक पतला सा खड़ा पत्थर भी मौजूद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी ऊंचाई अपने आप बढ़ रही है।
चट्टानों पर हिंदू पौराणिक कथाओं की कहानी…
स्वर्ग का दरवाजा जिस गुफा के अंदर है वहां के प्रवेश द्वार पर पथरीली छत के कुछ नीचे आने के अनुमानों को देखा जा सकता है, इसे हाथी ऐरावत के हजार पदचिह्नों के रूप में संदर्भित किया जाता है! भगवान नरसिंह के पंजे और जबड़े प्राकृतिक चट्टान में गुफा के बाहर उभरते देखे जा सकते हैं, यह भगवान नरसिंह और हिरण्यकशिपु के कहानी का वर्णन करते हैं! यहां मौजूद गुफा की चट्टानों पर हिंदू पौराणिक कथाओं की कहानी हैं!
इसके अलावा गुफा में राजा परिक्षित के बेटे की कहानी को देखा जा सकता है, वह सांप तक्षक द्वारा मारा गये थे!
MUST READ : माता सती की नाभि यहां गिरी थी!
भगवान गणेश का सिर…इसके अलावा यहां एक चट्टान दिखेगी जो मार्ग के बीच में है यह चट्टान भगवान गणेश के बिना सिर के आंग का प्रतिनिधित्व करती है! यहां कमल से पानी आता हैं और वह पानी इस मूर्ति पर पड़ता हैं, जो भगवान शिव द्वारा गणेशजी का सर काटने से पहले और हाथी का मस्तक जोडऩे से पहले की कथा का प्रतीक है, शरीर को सहस्त्रदल कमल (कमल के फूल) का पवित्र पानी से संरक्षित किया गया था!
इसके आगे केदारनाथ, बद्रीनाथ, और अमरनाथ के प्रसिद्ध तीर्थ केंद्रों की मूर्तियों की प्रतिकृतियां हैं! यह माना जाता है कि इस गुफा की यात्रा करना प्रसिद्ध चार धाम यात्रा के बराबर हैं! इसके आगे कुत्ते के मुंह के आकार में भगवान कालभैरव की गुफा है!
स्वर्ग के दरवाजे की ओर न जाते हुए यदि हम गुफा में थोड़ा आगे आते हैं तो हमें यहां 4 प्रवेश द्वार मिलते हैं जिनका नाम हैं रंद्वार,पापद्वार, धरमद्वार और मोक्षद्वार! आप रंद्वार और पापद्वार में प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि वह द्वार बंद हैं! केवल धरमद्वार और मोक्षद्वार खुले हैं, यह माना जाता है कि पापद्वार रावण की मृत्यु के बाद बंद कर दिया गया था और रंद्वार महाभारत युद्ध के बाद बंद किया गया था!
यह बूंदे ‘भारांकपाली’ पर गिरता हैं, यह ब्रह्मा खोपड़ी का प्रतिनिधित्व है, कहा जाता है की पानी पहले सफेद रंग का था जिसमें अमृत मिला हुआ रहता था! जिस हंस को ब्रह्मा द्वारा अमृत को पानी से अलग करने के लिए नियुक्त किया गया वह लालची था और उसने अमृत पीने की कोशिश की!
गुफा के अंदर की दीवारों पर पूरे ब्रह्मांड का रूप दिखता है! यह ‘सप्तऋषिमंडल’ (सात ऋषि) प्रतिनिधित्व करती है! छोटी गुफा की दीवारों के बाहर पेश पत्थर की एक बड़ी संख्या में हिंदूओं-के सब 33 करोड़ देवी – देवताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। पांडवों द्वारा खेला गया खेल इन गुफाओं के कोनों में दिखाया गया हैं!
इसके आगे चार युगों की अनुमानित चट्टान दिखाई देती हैं, जिन्हें सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर, और कलियुग माना जाता है, इन्हें स्पष्ट देखा जा सकता हैं! वहीं यहां कुछ गुफाएं भी हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि हर युग के साथ एक गुफा जो उस युग का प्रतिनिधित्व करती थी अपने आप बंद होती गईं।
दरअसल हम जिस गुफा के बारे में बात कर रहे हैं वह देवभूमि उत्तराखंड के गंगोलीहाट की माता कालिका के सुप्रसिद्ध हाट कालिका मंदिर व पास ही स्थित है। समुद्र तल से 1350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पाताल भुवनेश्वर नाम के स्थान पर प्राकृतिक गुफा में धरती से 120 मीटर अंदर गहराई के ‘पाताल’ में आस्था का अलौकिक संसार मौजूद है।
गुफा के तल पर पहुंचने के लिए एक संकरे रास्ते से 20 मीटर नीचे झुककर जाना पड़ता है। गुफा में भगवान भुवनेश्वर रूपी शिव के साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं व कामधेनु आदि की मूर्तियां व आकृतियां तथा जल कुंड मौजूद हैं। पाताल भुवनेश्वर मंदिर एक चुने जैसी पत्थर की गुफा हैं!
पाताल भुवनेश्वर मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण की मानसखंड 103 अध्याय में किया गया! वेद व्यास के अनुसार यहां देवी – देवताओं का आराम स्थान था! यह कहा जाता है कि इस जगह पर आकाश के देवता अन्य लोकों से और पाताल लोक के देवता भगवान शिव की पूजा के लिए आते थे!
स्कंदपुराण की मानसखंड में यह भी वर्णित है कि पहली बार इस गुफा की खोज मानव राजा रितुपुर्णा ने की थी, जो सूर्य वंश में एक राजा थे और अयोध्या में सत्तारूढ़ थे! रितुपुर्णा अपने समकक्ष के साथ व राजा नाला के साथ पाशों का एक खेल खेलते थे!