धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में किसी भी मंदिर में प्रवेश करने से पहले हाथ-पैर धोने की परंपरा है। जिसका धार्मिक ग्रंथों में विशेष महत्व है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। क्योंकि मंदिर में हम भगवान को प्रणाम करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए जाते हैं, तो मंदिर में अंदर जाने से पहले पैर धोना शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है। सांस्कृतिक आधार पर भी यह भी समझा जाता है। इस परंपरा का पालन करना भक्त की आस्था को प्रकट करता है।भक्तों का ईश्वर के प्रति सम्मान
पवित्रता का प्रतीक: मंदिर एक पवित्र स्थान होता है। जिसे देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। हाथ-पैर धोने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है। जिससे व्यक्ति पवित्र भावना के साथ भगवान के दर्शन कर सकता है। यह प्रक्रिया भक्त को अहंकार और नकारात्मक विचारों से मुक्त करने में मदद करती है। संस्कार का पालन: हिंदू धर्म में स्वच्छता को आध्यात्मिकता से जोड़ा गया है। हाथ-पैर धोना एक संस्कार है जो व्यक्ति को भगवान के सामने उपस्थित होने योग्य बनाता है। यह परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है।
भगवान का आदर: मंदिर में प्रवेश से पहले स्वच्छता बनाए रखना भगवान के प्रति सम्मान का प्रतीक है। क्योंकि हम मंदिर में भगवान की प्रतिमा के पास जाकर उनको नमन करते हैं। कई बार उनको हाथ से छू कर प्रणाम करते हैं। जो भक्त का भगवान के प्रति समर्पण के भाव को दर्शाता है।
हाथ-पैर तीन चीजों का संगम
मंदिर में प्रवेश करने से पहले हाथ-पैर धोना आस्था, स्वच्छता और पवित्रता का संगम माना जाता है। यह व्यक्ति को आत्मशुद्धि और मानसिक शांति प्रदान करता है। जिससे उसकी भक्ति और अधिक प्रभावशाली हो जाती है। यह परंपरा हमें न केवल धर्म के प्रति, बल्कि स्वच्छता और प्रकृति के प्रति भी जागरूक रहने की शिक्षा देती है। यह भी पढ़ें