तंत्र शास्त्र में दो तरह की साधनाओं का वर्णन मिलता है- पहली दक्षिणमार्गी और दूसरी वाममार्गी। तंत्र साधना, तंत्र क्रिया को वाममार्गी साधना कहते हैं, जो असाधारण और भयावह होती है। लेकिन इस तंत्र साधना का परिणाम तुरंत मिलता है। असाधारण प्रयत्य करने पर इसकी प्रतिक्रिया भी असाधारण होती है। तांत्रिक साधना प्रकृति में छिपी शक्ति पर अधिकार करने का एक उपक्रम है। इस दौरान व्यक्ति के साथ जो भी घटित होता है वह अचानक ही होता है जिसकी की वह कल्पना नहीं कर सकता।
यदि कोई साधक बिना जानकारी और तैयारी के तंत्र क्रिया करता है और उसमें कोई गलती हो जाती है तो ऐसे में उक्त साधक की मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए तंत्र साधना करने वाला साधक इस साधना को करने से पहले स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और शक्तिशाली बनाता है। क्योंकि तांत्रिक साधना करने के वाले को साधना काल में कभी-कभी डरावने, भूत, प्रेत, पिशाच, देव, दानव जैसी आकृतियां भी दिख सकती है।
तांत्रिक क्रिया तंत्र साधना के बारे में कहा जाता है कि इस मार्ग के पथिकों के लिए यह कार्य तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है। अक्सर या देखा गया है कि बाजार में मिलने वाले तंत्र-गंथों में जो साधना-विधियां लिखी गई है वे बहुत अधूरी है। उनमें दो ही बाते मिलती है- एक साधन का फल, दूसरे साधन-विधि का कोई छोटा-सा अंग। इसलिए तांत्रिक विद्या का प्रयोग किसी योग्य जानकार के सानिध्य में ही करना चाहिए, नहीं तो जरा सी गलती होने पर परिणाम बहुत भयावह प्राप्त होते हैं।
*************