सूर्य देव की पूजा करने से लोगों के जीवन में शांति बनी रहती है और कुछ लोग तो सुबह-सुबह उठकर रोजाना सूर्य नमस्कार भी करते हैं इसके साथ-साथ सूर्य को जल भी देतें हैं। वहीं दूसरी ओर आज के ही दिन यानि 14 मार्च 2021 को सूर्य राशि परिवर्तन करते हुए मीन राशि में जा रहे हैं।
भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख वैदिक काल से मिलता है। सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा और ईश्वर का नेत्र बताया गया है। सूर्य को जीवन, स्वास्थ्य और शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं। मान्यता के अनुसार सूर्यदेव की साधना से न सिर्फ सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है, बल्कि आरोग्य भी प्राप्त होता है। सूर्य को किए जाने वाले नमस्कार को सर्वांग व्यायाम कहा जाता है।
श्री सूर्य मंत्र
आ कृष्णेन् रजसा वर्तमानो निवेशयत्र अमतं मर्त्य च।
हिरणययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥
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सूर्यदेव की कृपा से ही पृथ्वी पर जीवन बरकरार है। ऋषि-मुनियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूपी ईश्वर बताते हुए सूर्य की साधना-आराधना को अत्यंत कल्याणकारी बताया है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। जिनकी साधना स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी। विदित हो कि प्रभु श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग दूर कर पाए थे।
सूर्य अर्घ्य मंत्र
ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर: ॥
ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:।
अर्घ्य समर्पयामि॥
मान्यता है कि भगवान दिवाकर यानी सूर्यदेव की साधना-आराधना का अक्षय फल मिलता है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ज्योतिष के अनुसार सूर्य को नवग्रहों में प्रथम ग्रह और पिता के भाव कर्म का स्वामी माना गया है। जीवन से जुड़े तमाम दुखों और रोग आदि को दूर करने के साथ-साथ जिन्हें संतान नहीं होती उन्हें सूर्य साधना से लाभ होता हैं। पिता-पुत्र के संबंधों में विशेष लाभ के लिए सूर्य साधना पुत्र को करनी चाहिए।
सूर्य बीज मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।
सूर्य जाप मंत्र
ॐ सूर्याय नम:। ॐ भास्कराय नम:। ऊं रवये नम:। ऊं मित्राय नम:। ॐ भानवे नम:। ॐ खगय नम:। ॐ पुष्णे नम:। ॐ मारिचाये नम:। ॐ आदित्याय नम:। ॐ सावित्रे नम:। ॐ आर्काय नम:। ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।
वैदिक काल से ही भारत में सूर्य की पूजा का प्रचलन रहा है। पहले यह साधना मंत्रों के माध्यम से हुआ करती थी लेकिन बाद में उनकी मूर्ति पूजा भी प्रारंभ हो गई। जिसके बाद तमाम जगह पर उनके भव्य मंदिर बनवाए गए।
प्राचीन काल में बने भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर आज भी भारत में हैं। सूर्य की साधना-अराधना से जुड़े प्रमुख प्राचीन मंदिरों में कोणार्क, कटारमल,मार्तंड और मोढ़ेरा आदि हैं।
सूर्य ध्यान मंत्र
ध्येय सदा सविष्तृ मंडल मध्यवर्ती।
नारायण: सर सिंजासन सन्नि: विष्ठ:॥
केयूरवान्मकर कुण्डलवान किरीटी।
हारी हिरण्यमय वपुधृत शंख चक्र॥
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाधुतिम्।
तमोहरि सर्वपापध्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं योन तन्द्रयते।
चरश्चरैवेति चरेवेति!
सनातन परंपरा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य की साधना-उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। सूर्यदेव की पूजा के लिए सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके पश्चात् उगते हुए सूर्य का दर्शन करते हुए उन्हें ॐ घृणि सूर्याय नम: कहते हुए जल अर्पित करें। सूर्य को दिए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर जल दें। सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात्प लाल आसन में बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।
रविवार के दिन श्री सूर्य देव की पूजा करने से अनेक लाभ होते हैं। हमारे जीवन में सूर्य देव के बहुत ही महत्तवपूर्ण लाभ होते हैं। उनसे हमें धूप मिलती है और साथ ही साथ रोशनी भी। ऐसा माना जाता है कि सुबह-सुबह घर में अगर सूर्य देव की आरती चलती है तो घर में खुशहाली आती है।
सूर्य के तीन प्रहर की साधना
सूर्य की दिन के तीन प्रहर की साधना विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
1. प्रातःकाल के समय सूर्य की साधना से आरोग्य की प्राप्ति होती है।
2. दोपहर के समय की साधना साधक को मान-सम्मान में वृद्धि कराती है।
3. संध्या के समय की विशेष रूप से की जाने वाली सूर्य की साधना सौभाग्य को जगाती है और संपन्नता लाती है।
सूर्य नमस्कार के मंत्र –
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ मित्राय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगय नमः।
ॐ पुष्णे नमः।
ॐ मारिचाये नमः।
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सावित्रे नमः।
ॐ आर्काय नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
श्री सूर्यदेव की आरती…
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान…।।
ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।