यह चमत्कारी स्तंभेश्वर महादेव मंदिर समुद्र में स्थित है, कहा जाता हैं कि इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय ने अपने तपोबल से किया था । इस मंदिर का आंखों से ओझल हो जाना कोई चमत्कार नहीं बल्कि एक प्राकृतिक घटना का परिणाम हैं । दरअसल दिन में कम से कम दो बार समुद्र का जल स्तर इतना बढ़ जाता है कि मंदिर पूरी तरह समुद्र में डूब जाता हैं । फिर कुछ ही पलो में समुद्र का जल स्तर घट जाता है और मंदिर फिर से नजर आने लगता हैं । यह घटना हर रोज सुबह और शाम के समय ज्यादातर घटती हैं । शिव भक्त श्रद्धालु इस घटना को समद्र द्वारा शिव का अभिषेक करना कहते हैं ।
स्कंद पुराण में इस मंदिर के निर्माण से जुड़ी कथा मिलती हैं । कथा के अनुसार, राक्षस ताड़कासुर ने कठोर तपस्या के बल पर शिवजी से यह आशीर्वाद प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु तभी संभव है, जब शिव पुत्र उसकी हत्या करे । भगवान शिव ने उसे वरदान दे दिया, आशीर्वाद मिलते ही ताड़कासुर ने पूरे ब्रह्मांड में उत्पात मचाना शुरू कर दिया, उधर शिव के तेज से उत्पन्न हुए कार्तिकेय का पालन-पोषण कृतिकाओं द्वारा हो रहा था । उसके उत्पात से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए बालरूप कार्तिकेय ने ताड़कासुर का वध किया, लेकिन जैसे ही उन्हें ज्ञात हुआ कि ताड़कासुर शिवजी का भक्त था, वह व्यथित हो गए । तब देवताओं के मार्गदर्शन से उन्होंने महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की, यही स्तंभ मंदिर आज स्तंभेश्वर मंदिर के नाम से विश्व विख्यात है ।