इंद्र और अन्य देवता भगवान शिव के पास जाते हैं और अपनी समस्या बताते हैं। बाद में भगवान शिव पार्वती के अनुराग की परीक्षा लेते हैं, पार्वती की तपस्या के बाद शुभ घड़ी में शिव पार्वती का विवाह होता है। इसके बाद कार्तिकेय का जन्म होता है और सही समय पर कार्तिकेय तारकासुर का वध कर देवताओं का स्थान दिलाते हैं। मान्यता है कि कार्तिकेय का जन्म षष्ठी तिथि पर हुआ था, इसलिए षष्ठी तिथि पर कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
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स्कंद षष्ठी तिथिः स्कंद षष्ठी तिथि की शुरुआत 26 जनवरी सुबह 10.28 बजे हो रही है और यह तिथि 27 जनवरी को सुबह 9.10 बजे संपन्न हो रही है। जब पंचमी तिथि समाप्त होती है और षष्ठी तिथि सूर्योदय व सूर्यास्त के बीच शुरू होती है तो पंचमी और षष्ठी दोनों संयुग्मित हो जाती है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु के अनुसार ऐसी स्थिति में इस दिन को स्कंद षष्ठी व्रतम के लिए चुना जाता है।
स्कंद षष्ठी तिथिः स्कंद षष्ठी तिथि की शुरुआत 26 जनवरी सुबह 10.28 बजे हो रही है और यह तिथि 27 जनवरी को सुबह 9.10 बजे संपन्न हो रही है। जब पंचमी तिथि समाप्त होती है और षष्ठी तिथि सूर्योदय व सूर्यास्त के बीच शुरू होती है तो पंचमी और षष्ठी दोनों संयुग्मित हो जाती है। धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु के अनुसार ऐसी स्थिति में इस दिन को स्कंद षष्ठी व्रतम के लिए चुना जाता है।
पुरोहितों के अनुसार सभी षष्ठी भगवान मुरुगन को समर्पित है, लेकिन चंद्रमास कार्तिका के दौरान पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की षष्ठी सबसे महत्वपूर्ण होती है। इस दौरान भक्त छह दिन उपवास रखते हैं, जो सूर्यसंहारम के दिन तक चलता है। सूर्यसंहारम के अगले दिन को तिरुकल्याणम के नाम से जाना जाता है।