धर्म-कर्म

गौहत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने यहां किया था स्नान, पढ़ें पूरी कथा

Shyam Kund Ki Kahani : भगवान कृष्ण से संबंधित कई कहानियां ब्रज क्षेत्र में प्रचलित हैं, इनमें से एक कथा राधा कुंड के समीप ही बने श्याम कुंड में स्नान से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि इसे भगवान कृष्ण ने एक राक्षस के वध के बाद खोदा था और उसमें स्नान किया था। आइये पढ़ते हैं पूरी कहानी ..

जयपुरOct 26, 2024 / 07:51 am

Pravin Pandey

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Shyam Kund Ki Kahani : पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन क्षेत्र में गाय चराते थे। इसी दौरान अरिष्टासुर नाम के असुर ने गाय के बछड़े रूप धरा और भगवान श्रीकृष्ण पर हमला कर दिया, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण अरिष्टासुर को पहचान लिया और उसका वध कर दिया। मान्यता है कि राधा कुंड क्षेत्र पूर्व में राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। इसलिए अरिष्टासुर ब्रजवासियों को तंग करता था।

लेकिन अरिष्टासुर का वध भगवान ने जब किया, उस समय वह बछड़े के रूप में था। इस पर राधाजी ने कान्हा को गौवंश हत्या के पाप की ओर ध्यान दिलाया। यह सुनकर श्रीकृष्‍ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधाजी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। श्रीकृष्ण के खोदे गए कुंड को श्‍याम कुंड और राधाजी के कुंड को राधा कुंड कहते हैं। स्नान के बाद श्रीकृष्ण राधा ने यहां महारास भी रचाया था।


श्री कृष्ण ने दिया था वरदान

Radha Ashtami Katha: ब्रह्म पुराण और गर्ग संहिता के गिर्राज खंड के अनुसार महारास के बाद श्रीकृष्ण ने राधाजी की इच्‍छानुसार उन्हें वरदान दिया था कि जो भी दंपती राधा कुंड में राधा अष्टमी पर स्नान करेगा उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। मान्यता है कि आज भी कार्तिक मास के पुष्य नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण 12 बारह बजे तक राधाजी के साथ राधाकुंड में अष्ट सखियों संग महारास करते हैं।

राधा कुंड में स्नान की विधि

Radha kund snan: मथुरा नगरी से लगभग 26 किलोमीटर दूर गोवर्धन परिक्रमा के दौरान वृंदावन में राधा कुंड प्रमुख पड़ाव है। कार्तिक माह में राधा कुंड में स्नान करने के लिए यहां विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं और कार्तिक कृष्ण अष्टमी यानी अहोई अष्टमी, जिसे राधा अष्टमी भी कहते है पर राधा कुंड में स्नान करके दंपती पुत्र रत्न प्राप्ति की कामना करते हैं।

इस संबंध में एक अन्य मान्यता है कि सप्तमी की रात को यदि पुष्य नक्षत्र हो तो रात्रि 12 बजे राधा कुंड में स्नान करना चाहिए। इसके बाद सुहागिनें अपने केश खोलकर राधाजी की आराधना करती हैं और उनसे पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।
इसके लिए स्नान के बाद राधा कुंड पर कच्चा कद्दू भी चढ़ाते हैं, जिसे कुष्मांडा प्रसाद के नाम से जाना जाता हैं। कार्तिक मास की अष्टमी को वे पति-पत्नी जिन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हुई है, वे निर्जला व्रत रखते हैं।
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