इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि श्री कृष्ण की पूजा अत्यंत सरल है, लेकिन कई बार चूक हो जाने के चलते भक्त को पूर्ण आशीर्वाद नहीं मिल पाता।
वहीं कई बार हम भूलवश पूजन के दौरान कुछ बातों की ओर ध्यान नहीं दे पाने के कारण भी सब कुछ अच्छी तरह से किए जाने के बावजूद हमारी मनोकाना पूर्ण नहीं हो पाती। ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमें पूजा की पूर्व में ही तैयारी कर लेनी चाहिए।
पंडित शर्मा के अनुसार यूं तो भाद्रपद के पूरे मास में श्री कृष्ण की पूजा की जाती है, लेकिन पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण Krishna jayanti का जन्म आधी रात को हुआ था ऐसे में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी gokulashtami की पूजा रात में जबकि जन्माष्टमी Krishna Ashtami का व्रत हमेशा उदया तिथि Janmashtami में रखना ही उत्तम माना जाता है।
उनके अनुसार इस बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी Krishna jayanti 30 अगस्त को मनाई जाएगी। वहीं भगवान कृष्ण Janmashtami का पूजन gokulashtami समय 30 अगस्त की रात्रि 11.59 मिनट से देर रात 12.44 मिनट तक रहने के चलते कुल अवधि 45 मिनट रहेगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार gokulashtami, 29 अगस्त, रविवार को Janmashtami रात 11.25 मिनट से भाद्रपद कृष्ण अष्टमी Krishna Ashtami तिथि शुरू होगी जो सोमवार, 30 अगस्त को देर रात 1.59 मिनट तक रहेगी।
हिंदू पंचांग की गणना के अनुसार इस बार श्रीकृष्ण की 5248वीं जयंती होगी। वहीं जन्माष्टमी का व्रत 30 अगस्त को किया जाएगा। इसके अतिरिक्त सबसे खास बात यह भी रहेगी कि सभी भक्त यानि गृहस्थ और साधु-संत दोनों इस बार एक ही दिन व्रत करेंगे।
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी Janmashtami पर इस सरल विधि से करें पूजन
1. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी Krishna Ashtami के पूजन के तहत सबसे पहले एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा लेने के बाद उस पर भगवान् कृष्ण की मूर्ति एक पात्र में रखें।
2. जिसके बाद भगवान् कृष्ण Janmashtami की मूर्ति के सामने दीपक व धूपबत्ती भी जलाएं। साथ ही श्री कृष्ण से प्रार्थना करें कि, ‘हे श्री कृष्ण ! कृपया यहां पधारें और पूजा ग्रहण करें।
3. इसके बाद श्री कृष्ण को पंचामृत से स्नान कराएं और फिर एक बार गंगाजल से पुन: स्नान कराएं।
4. श्री कृष्ण को इसके बाद साफ स्वच्छ या नए वस्त्र पहनाते हुए उनका श्रृंगार करें। साथ ही उन्हें दीपक और फिरर धूप दिखाएं।
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5. श्री कृष्ण को अष्टगंध चंदन और रोली का तिलक लगाते हुए तिलक पर अक्षत (चावल) भी लगाएं। इसके बाद श्री कृष्ण को भोग लगाने के तहत माखन मिश्री और अन्य भोग सामग्री अर्पित करें, यहां ध्यान रखें कि श्री कृष्ण को तुलसी का पत्ता भी विशेष रूप से अर्पित करें और उनके पीने के लिए गंगाजल भी रखें।
6. इसके बाद श्री कृष्ण का बच्चे के रूप में पीपल के पत्ते पर लेटे होने का ध्यान करें। साथ ही ऐसा भी महसूस करें कि अनंत ब्रह्माण्ड उनके शरीर में मौजूद हैं और वे अंगूठा चूस रहे हैं।
7. इस दौरान श्री कृष्ण के नाम के अर्थ (कृष् का अर्थ है आकर्षित करना और ण का अर्थ है परमानंद या पूर्ण मोक्ष। यानि वह जो परमानंद या पूर्ण मोक्ष की ओर आकर्षित करता है) के साथ बार बार उनका चिंतन कीजिए। और साथ ही श्री कृष्ण को प्रणाम भी करते रहें।
साथ ही मन ही मन ये भी कहते रहें कि हे श्रीकृष्ण! मुझे अपने चरणों में अनन्य भक्ति प्रदान करें। इसके बाद विसर्जन के लिए हाथ में फूल और चावल लेकर चौकी पर चढ़ाते हुए कहें : हे श्री कृष्ण! पूजा में पधारने के लिए आपका धन्यवाद। कृपा कर मेरी पूजा और जप को ग्रहण करें और अपने दिव्य धाम को पुनः पधारें।