धर्म-कर्म

युवाओं को रोज पढ़ना चाहिए शिवजी का यह स्त्रोत, हर बाधा रहती है दूर, जीवन में आती है सकारात्मकता

Shiv Mritunjay Stotram: शिव मृत्युंजय स्तोत्रम् भगवान शंकर की स्तुति है। इसकी रचना ऋषि मार्कंडेय ने की थी, जिसका उल्लेख पद्म पुराण के उत्तरखंड में है। शिव मृत्युंजय स्तोत्र पाठ का चमत्कारिक लाभ होता है। इससे मृत्यु का भय खत्म हो जाता है, व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा और साहस का संचार होता है। इस कारण विशेष रूप से युवाओं को इस स्तोत्र का पाठ फलदायक है। www.patrika.com पर आइये जानते हैं शिव मृत्युंजय स्तोत्र का महत्व..

भोपालAug 12, 2024 / 09:24 pm

Pravin Pandey

शिव मृत्युंजय स्तोत्रम्

शिव मृत्युंजय स्तोत्र का महत्व

Shiv Mritunjay Stotram: धार्मिक कथाओं के अनुसार जन्म से ऋषि मार्कंडेय अल्पायु थे, उनके माता पिता पुत्र की अकाल मौत को लेकर भयभीत रहते थे। बाद में ऋषि मार्कंडेय ने महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर यमराज को लौटने पर विवश किया और दीर्घायु प्राप्त की। इन्हीं ऋषि मार्कंडेय ने बाद में संसार के कल्याण के लिए श्रीमृत्युंजयस्तोत्रम् को लिखा।
इस स्तुति में भगवान शिव के गुणों का बखान किया गया है। मान्यता है कि जो भी भक्त रोज इस स्तोत्र का पाठ करता है उस पर शिवजी की कृपा बनी रहती है। विशेष रूप से सोमवार, त्रयोदशी, चतुर्दशी या श्रावण मास में इसका पाठ जरूर करना चाहिए।
यह मृत्युंजय स्तोत्रम् युवा अवस्था में मन को स्थिर रखने की बहुत जरूरत होती है, उनको अभय और जीवन में पॉजीटिविटी की भी जरूरत पड़ती है। इसलिए युवाओं के लिए भोलेनाथ का यह स्तोत्र विशेष रूप से शुभ फलदायक है। उनकी हर मनोकामना पूरी होगी, जीवन का संकट दूर होगा। आइये पढ़ें संपूर्ण शिव मृत्युंजय स्तोत्रम्

॥ शिव मृत्युञ्जय स्तोत्रम् ॥


रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं

शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवंदितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥1॥

पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥2॥
मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं

पंकजासनपद्मलोचनपूजितांगघ्रिसरोरुहम्।

देवसिद्धतरंगिणी करसिक्तशीतजटाधरं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥3॥

कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

अंधकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥4॥

यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजंगविभूषणं

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥5॥

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥6॥

भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥7॥

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमाव्रतं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥8॥

रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥9॥
कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥10॥

नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥11॥

वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥12॥
देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥13॥

अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥14॥

आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥15॥
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥16॥

॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्। ॥

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