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शिव का धाम: यहां जप करने से टल जाता है मृत्यु का संकट – ये है हिंदुओं का 5वां धाम

कैलाश मानसरोवर यात्रा के प्राचीन मार्ग पर पड़ता है ये मंदिर

May 04, 2020 / 02:30 am

दीपेश तिवारी

jageshwar-dham

Shiv Dham : where even death says no to come

सनातन धर्म के आदि पंच देवों में से एक महादेव भी हैं, इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। वहीं भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर भी मौजूद है, जहां ये संहार के देवता भक्तों के मृत्यु का संकट तक टाल देते हैं।

दरअलस हम बात कर रहे हैं देवीभूमि के कुमाऊं क्षेत्र की जिसकी गोद में बसा है प्राचीन जागेश्वर धाम जो कि केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि मंदिरों की नगरी है। ये मंदिर सैकड़ों साल पहले बने थे।

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टल जाती है मृत्यु
इस धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से जीवन तो सुधरता ही है, मृत्यु भी टल जाती है। जागेश्वर मंदिर समूह प्राचीनता के साथ ही अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। ये धाम 125 छोटे-बड़े मंदिरों का समूह है। कहा जाता है कि जागेश्वर मंदिर कैलाश मानसरोवर यात्रा के प्राचीन मार्ग पर पड़ता है। इसे भक्त शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग मानते है।

वहीं इसे उत्तराखंड के पांचवें धाम के रूप में भी जाना जाता है। यहां हर साल सावन महीने में यहां श्रावणी मेला लगता है जो कि 1 महीने तक चलता है। इसमें हिस्सा लेने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु हर साल यहां पहुंचते हैं।

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जागेश्वर धाम अल्मोड़ा से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां बने मंदिरों का निर्माण आठवीं से 10वीं शताब्दी के बीच कराया गया। मंदिरों के निर्माण का श्रेय कत्यूरी और चंद्र शासकों को जाता है, जो कि सैकड़ों साल पहले इस क्षेत्र पर राज किया करते थे।

कहा तो ये भी जाता है जागेश्वर धाम में भगवान शिव ने तप किया था। उत्तराखंड की प्राचीन वास्तुकला कितनी समृद्ध थी ये जानना हो तो जागेश्वर धाम जरूर जाएं, यहां आने वाले श्रद्धालु कभी निराश नहीं होते। श्रावणी मेले में तो मंदिर के आस-पास की रौनक देखते ही बनती है।

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