षटतिला एकादशी व्रत कथाः एक कथा के अनुसार (Shattila Ekadashi Vrat Katha) षटतिला एकादशी की कथा भगवान विष्णु ने नारद मुनि को सुनाई थी। उन्होंने बताया कि बहुत पहले मृत्युलोक में एक बुद्धिमान ब्राह्मणी रहती थी, वह हमेशा व्रत उपवास किया करती थी। एक बार उसने एक माह तक उपवास किया।
इससे उसका शरीर कमजोर हो गया फिर उसने देवताओं और ब्राह्मणों को दान नहीं किया। मैंने चिंतन किया इस ब्राह्मणी ने उपवास से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है, इसके प्रभाव से इसको बैकुंठ भी मिल जाएगा। लेकिन इसने कभी अन्नदान नहीं किया, और बगैर अन्नदान जीव की तृप्ति कठिन है।
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यह सोचकर मैं मृत्युलोक पहुंचा और उससे भिक्षा मांगी। उसने मुझे मिट्टी का एक पिंड दे दिया, वही लेकर मैं बैकुंठ लौट आया। कुछ समय बाद जब वह शरीर त्यागकर स्वर्ग आई तो उसे यहां पर मिट्टी के पिंड के प्रभाव से आम वृक्ष समेत एक घर मिला लेकिन घऱ अन्य वस्तुओं से खाली था। वह मेरे पास आई और कहा कि मैंने व्रत पूजन किया था फिर भी मेरा घर रिक्त है।
यह सोचकर मैं मृत्युलोक पहुंचा और उससे भिक्षा मांगी। उसने मुझे मिट्टी का एक पिंड दे दिया, वही लेकर मैं बैकुंठ लौट आया। कुछ समय बाद जब वह शरीर त्यागकर स्वर्ग आई तो उसे यहां पर मिट्टी के पिंड के प्रभाव से आम वृक्ष समेत एक घर मिला लेकिन घऱ अन्य वस्तुओं से खाली था। वह मेरे पास आई और कहा कि मैंने व्रत पूजन किया था फिर भी मेरा घर रिक्त है।
इसकी क्या वजह है तो मैंने उससे कहा कि तुम अपने घर जाओ और जब देव स्त्रियां मिलने आएं तो उनसे षटतिला एकादशी व्रत का विधान पूछना और बगैर नियम जाने द्वार मत खोलना। उसने ऐसा ही किया और षटतिला एकादशी व्रत का विधान जानकर उपवास किया। इसके प्रभाव से उसका घर धन धान्य से भर गया।