सूर्य को जीवन और शनि को मृत्यु का कारक कहा गया है, सूर्य उत्तरायण में बली होता है और शनि दक्षिणायन में बली होता है, सूर्य मेष राशि में उच्च और तुला राशि में नीच हो जाता है। लोग दोनों की ही कृपा पाने के लिए अनेक तरह की पूजा और उपाय भी करते हैं। जैसे सूर्य देव से हमें हर रोज जीवन प्राण प्राप्त होता है, वहीं शनि देव हमारी दैनिक दिनचर्या के अनुरूप अच्छे बूरे कर्मों का फल देते हैं।
ये है शनि देव की पूजा विधि एवं पूजन का सटीक शुभ मुहूर्त
सूर्य और शनि के संबंध के बारे में ज्योतिष पं. अरविंद तिवारी ने बताया कि जिस राशि में सूर्य उच्च फल प्रदान करता है, उसी राशि में शनि नीच हो जाता है, और सूर्य जिस राशि में नीच होता है उसी राशि में शनि उच्च फल प्रदान करता है। दोनों पिता-पुत्र हमेशा एक दूसरे के विपरीत ही कार्य करते है, सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हैं और सूर्य से प्रकाश लेते हैं, सूर्य में अपना स्वयं का प्रकाश है।
शनि और सूर्य
शनि सूर्य से सबसे अधिक दूर स्थित हैं, जिस कारण सूर्य का प्रकाश शनि तक नहीं पहुंच पाता, इसलिए शनि देव का रंग प्रकाश हीनता के कारण काला है। सूर्य आत्मकारक, प्रभावशाली, तेजस्वी ग्रह है, इसलिए प्रकृति का नियम है कि अंधकार और प्रकाश दोनों एक साथ एक स्थान पर नहीं रह सकते।
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यदि सूर्य-शनि युति योग जिस किसी जातक की कुंडली में बन रहा हो, जिसमें सूर्य, शनि राशि में या शनि सूर्य राशि में हो उन व्यक्तियों को सदैव सरकारी कार्यों में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक को समय समय पर उच्च पद और उच्चाधिकारियों से संबंध मधुर बनाए रखने के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। यह योग व्यक्ति के जीवन को संघर्षमय बनाता है, यदि शनि-शनि समसप्तक स्थिति में हो, तो पिता-पुत्र में वैचारिक मतभेद उत्पन्न होते हैं, ऐसे पिता-पुत्र को एक छत के नीचे कार्य नहीं चाहिए।
ऐसे जोतकों को शनि और सूर्य दोनों की ही उपासना करना चाहिए, सूर्य की कृपा के लिए नियमित 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने के बाद 11 बार गायत्री मंत्र बोलते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। वहीं शनि की कृपा के लिए प्रति शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर उसके सामने बैठकर शनि मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
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