पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शनिदेव भगवान भोलेनाथ से मिलने कैलाश पहुंचे। वहां पर उन्होंने अपने गुरुदेव को प्रणाम किया। इसके बाद शनिदेन ने कहा कि हे प्रभु! कल मैं आपकी राशि में आने वाला हूं। अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है।
ये भी पढ़ें- शनि जयंती 2019 : शिव की कृपा से शनि बने थे दंडाधिकारी शनिदेव के इस बात को सुनकर महादेव हतप्रभ हो गए। उसके बाद भोलेनाथ ने शनिदेव से पूजा का आपकी वक्र दृष्टि मेरे ऊपर कब तक रहेगी। शनिदेव ने बताया कि कल सवा पहर तक। शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर चिंतित रहने लगे। साथ ही शनि के वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे।
शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए भगवान भोलेनाथ ने अगले दिन मृत्युलोक जाने का फैसला लिया और वे अगले दिन पृथ्वी लोक चले गए। वहां जाने के महादेव ने एक हाथी का रूप धारण कर लिया और सवा पहर तक हाथी के रूप में ही पृत्वी लोक में भ्रमण करते रहे और शाम में वापस कैलाश लौट आये।
ये भी पढ़ें- शनि जयंती 2019 : शनि की वक्र दृष्टि से शिवजी भी नहीं बच पाए थे कैलाश लौटने के बाद भोलेनाथ ने देखा कि शनिदेव उनका इंतजार कर रहे हैं। शनिदेव को देखकर भगवना भोलेनाथ ने कहा कि मैं आपकी वक्र दृष्टि से बच गया। आपकी वक्र दृष्टि का मेरे ऊपर कोई असर नहीं हुआ। यह सुनकर शनिदेव मुस्कुराये और बोले कि मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं न दानव। आगे उन्होंने कहा आप भी मेरी दुष्टि से नहीं बच पाए।
शनिदेव की बात सुनकर भगवान शिव आश्चर्यचकित रहे गए। शनिदेव के कहा कि मेरी दृष्टि के कारण ही आपको सवा पहर तक देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा। इससे साफ है कि शनि देव की नजर से कोई बच नहीं सकता। जब माहदेव नहीं बच तो मृत्युलोक में निवास करने वाले मनुष्य कैसे बच पाएंगे।