ज्योतिष में शनि दोष के कारण होने वाली परेशानियों से बचने के लिए अनेक उपाय बताएं गए है। अगर कोई इन उपायों को कर लें तो कुछ हद तक राहत मिलती भी है। लेकिन कहा जाता है कि शनि दोष से शीघ्र लाभ के लिए शनि देव का तेल से अभिषेक करने से शनि देव प्रसन्न होकर अपनी शरण में आने वाले भक्तों के जीवन से सारे कष्टों का अंत कर देते हैं। शनि जयंती के दिन सूर्यास्त के समय विधिवत पूजन करने के बाद तेल से ऊँ शं शनैश्चराय नमः का 108 बार उच्चारण करते हुए सरसों या तिल के तेल से अभिषेक करें।
इसलिए किया जाता है तेल से शनि का अभिषेक
ऐसा कहा जाता है कि श्री वाल्मीकि जी ने वाल्मीकि रामायण के अलावा आनंद रामायण की भी रचना की थी और उसी रामायण में एक कथा आती है कि लंका पर चढ़ाई के लिए समुद्र पर जिस सेतु पुल का निर्माण किया गया था उसकी सुरक्षा का दायित्यव राम जी ने अपने प्रिय भक्त हनुमानजी को सौंपा था। एक दिन हनुमानजी रात में भगवान श्रीराम का ध्यान करते हुए सेतु पुल की रक्षा कर रहे थे कि वहां अचानक शनि देव आ पहुंचे और हनुमान जी को व्यंग्यबाणों से परेशान करने लगे।
श्री हनुमानजी ने शनि देव के सारे आरापों को स्वीकार करते हुए कहा कि कृपया वह वे उन्हें सेतु की रक्षा करने दें, लेकिन शनि देव नहीं माने और हनुमान जी को परेशान करने लगे। शनि देव के नहीं मानने पर क्रोधित होकर हनुमानजी ने शनिदेव को अपनी पूंछ में जकड़ कर इधर-उधर पटकना शुरू कर दिया। हनुमान जी के द्वारा पटकने से शनि देव को बहुत पीड़ा हुई और पीड़ा से बचने के लिए शनि देव ने अपने शरीर पर तेल का लेप लगाया, जिससे उनकी पीड़ा तुरंत दूर हो गई। तभी से शनि देव को तेल चढ़ाने की परम्परा शुरू हुई। इसलिए शनि जयंती एवं अन्य दिनों में शनि देव का तेल से अभिषेक करने वालों की शनि दोषों से रक्षा होती है।
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