हिन्दू धर्म ग्रंथों में कथा आती है कि जब माता अंजनी और वानर राज केसरी जी पुत्र भगवान शंकर के अंश अवतार श्री हनुमान जी बाल अवस्था में तब एक दिन उन्हें बहुत भूख लगी माता के द्वारा भोजन देने के बाद भी उनकी भूख शांत नहीं हो रही थी। अचानक बाल रूप हनुमान जी आकाश में लाल-लाल सूर्य देव दिखाई पड़ें और हनुमान जी सूर्य को फल समझकर खाने के लिए आकाश में उड़ गयें और सूर्य देव फल जानकर अपनी भूख मिटाने के लिए खा गए। जिस दिन हनुमान जी ने सूर्य देव को निगला था उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी।
सूर्य को हनुमान के द्वारा निगलने से चारों ओर अंधेरा फैल गया, इस पर क्रोधित होकर जब देवताओं के राजा देवराज इंद्र ने हनुमान जी के उपर अपने वज्र का प्रहार किया जिससे सूर्य देव हनुमान के उदर से मुक्त हो गये। इसके बाद इंद्र सहित सभी देवताओं से पवन पुत्र हनुमान जी को अनेक वरदान प्रदान किए थे। तभी से रूप चौदस के दिन श्री हनुमान जी की विशेष पूजा करने का भी विधान बन गया। मान्यता है इस दिन जीवन के अंधकार को दूर करने के भाव से श्रीहनुमान जी की पूजा विधि पूर्वक एवं उनके मंत्रों का जप करने से व्यक्ति की सभी बाधाएं दूर हो जाती है।
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