कहानी का महत्व
धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के दरबार यानि बैकुंठ में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल थे। मान्यता है कि एक बार चार कुमार भगवान विष्णु से मिलने के लिए बैकुंठधाम आए थे। इन चारों कुमारों के नाम (सनक, सनंदन, सनातन, और सनतकुमार) थे। माना जाता है कि इन चारों कुमारों को द्वारपालों ने धाम में भीतर जाने से रोक दिया।
सनतकुमारों का श्राप
ब्रह्मज्ञानी कुमारों को यह देखकर अपना अपमान महसूस हुआ। इसके बाद उन्होंने जय और विजय को श्राप दे दिया। जब इस बात की खबर भगवान विष्णु को लगी तो वह नंगे पैर दौड़ कर बैकुंठधाम के मुख्य द्वार पर आए। भगवान ने चारों कुमारों को देखते ही मांफी मांगी और उनके चरणों में गिर गए।
भगावन विष्णु ने मांगी माफी
मान्यता है कि भगवान विष्णु ने द्वारपालों के द्वारा चारों कुमारों के साथ किए गए अपमान के लिए क्षमा याचना की। भगवान विष्णु ने कुमारों से कहा कि जय और विजय से भूल वश त्रुटि हुई हैं। इन्हें मांफ करें। लेकिन सनतकुमार इतने क्रोधित थे कि उन्होंने विष्णु जी से कहा कि सब कुछ आपकी इच्छा से हुआ है। इसलिए अब ये दोनों तीन जन्मों तक धरती पर रहेंगे और तीनों जन्मों में आपके दुश्मन बनेंगे। इन दोनों का आपके हाथों से ही उद्धार होगा।
तीन जन्मों के बाद हुई मोक्ष प्राप्ति
धार्मिक मान्यता है कि जय और विजय को सबसे पहले राक्षस कुल में जन्म लिया था। जिसमें जय को रावण नाम दिया गया और विजय को कुंभकर्ण, जो भगवान श्रीराम के हाथों मारे गए थे। वहीं इनको हिरण्याक्ष और हिरण्याकश्प का जन्म लिया, तब इनको मारने के लिए भगवा विष्णु ने वराह अवतार लिया था। इसके बाद इनका जन्म शिशुपाल और दंतावक्र के रूप में हुआ। जिनको भगवान श्रीकृष्ण ने मारा और इनको परमपद की प्राप्त हुई।