कौन थे वे दो वानर योद्धा (Who were those two monkey warriors)
धार्मिक कथाओं के अनुसार नल और नील दोनों वानर समुदाय के सदस्य थे। माना जाता है कि ये दोनों वानर भगवान विष्णु और विश्वकर्मा जी के वरदान स्वरूप थे। ये बचपन से बहुत शरारती किस्म के वानर थे। मान्यता है कि ये तपस्या कर रहे ऋषि-मुनियों के तपोवन में भगवान की मूर्तियों को जल में फेंक दिया करते थे। नल और नील की इस हरकत से ऋषि-मुनि परेशान हो गए और उन्होंने श्राप दिया। उन्हें कहा कि जिस वस्तु को तुम जल में फेंकोगे वह डूबेगी नहीं बल्कि तैरने लगेगी। यह श्राप बाद में वरदान साबित हुआ।
भगवान राम की मदद में योगदान (Contribution in helping Lord Ram)
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब भगवान राम ने रावण से युद्ध के लिए लंका जाने का निश्चय किया था। तो उन्हें समुद्र को पार करने के लिए रामसेतु (पुल) बनाने की आवश्यकता पड़ी। समुद्र पर पुल बनाने के कार्य में नल और नील की अनोखी शक्ति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । नल और नील ने वानर सेना के साथ मिलकर समुद्र में पत्थरों को फेंककर रामसेतु बनाया था। ऋषियों के श्राप के कारण भारी पत्थर पानी में डूबे नहीं बल्कि तैरने लगे।
राम नाम लिखते है तैरने लगे सभी पत्थर (Rams name is written on all the floating stones)
नल और नील के पत्थर समुद्र के पानी में तैरन लगते थे। लेकिन कुछ वानरों के पत्थर पानी में डूब जाते थे। इसके बाद उन्होंने पत्थरों पर राम का नाम लिखा तो सभी पत्थर तैरने लगे। इस प्रकार वानर सेना ने समुद्र को पार करने का मार्ग बनाया। जिससे भगवान राम अपनी सेना सहित लंका पहुंच सके।
रामसेतु का महत्व (Importance of Ram Setu)
रामसेतु उस समय का न केवल एक इंजीनियरिंग चमत्कार था। बल्कि भगवान राम की विजय और धर्म की स्थापना में एक प्रमुख स्तंभ था। इस पुल के निर्माण के पीछे नल और नील की विशेष भूमिका थी। ऐसी मान्यता है कि भगवान के कार्यों में हर व्यक्ति चाहे वह कितना भी सामान्य क्यों न हो। वह अपनी विशेषता के माध्यम से योगदान दे सकता है।