उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं वमनं शवकर्पटम् ।
काकविष्टा ते पञ्चैते पवित्राति मनोहरा ॥
उल्टी, जानवरों की बीट, नदी का जल आदि के बारे में कहा जाता हैं कि अशुद्ध या अपवित्र होते है लेकन शास्त्रों में इन्हें अपवित्र होने के बाद भी अशुद्ध नहीं माना गया हैं । देवी देवताओं पूजन में इनका उपयोग करने को कहा गया हैं, और इनके बिना पूजा पाठ भी अधूरा ही माना जाता हैं । इनमें से कुछ का तो पूजन भी किया जाता हैं ।
1- उच्छिष्ट- अर्थात गाय का दूध- सभी जानते हैं कि जब गाय का दुध निकाला जाता हैं तो उससे पहले दुध को गाय का बछड़ा ही पीता हैं बछड़ा दुध पीने के बाद गाय के थनों को दुध पीकर जुठा (उच्छिष्ट) कर देता है, लेकिन फिर भी गाय का दुध पवित्र ही माना जाता हैं और पूजा पाठ में उपयोग किया जाता हैं यहां तक जुठा होते हुए भी भगवान शिव पर चढ़ता हैं ।
2- शिव निर्माल्यं- अर्थात गंगा का जल- शास्त्रों में बताई गई कथा के अनुसार गंगा जी का अवतरण स्वर्ग से सीधा भगवान शिव जी के मस्तक पर हुआ था, और शास्त्रों के अनुसार नियम यह हैं कि शिवजी पर चढ़ायी हुई हर चीज़ निर्माल्य है, लेकिन फिर भी निर्माल्य होने के बाद भी गंगाजल को सबसे पवित्र माना जाता हैं ।
3- वमनम्- शहद- ये बात तो हर कोई जानता हैं कि मधुमख्खी जब फूलों का रस लेकर अपने छत्ते पर आती तो वह अपने मुख से उस रस की शहद के रूप में उल्टी करती है । लेकिन वही उल्टी किया हुआ शहद पूजन में, पितरों के श्राद्ध तर्पण में प्रयोग होता हैं, साथ इसी शहद से अनेक रोग भी दूर हो जाते हैं ।
4- शव कर्पटम्- रेशमी वस्त्र- रेशम के वस्त्रों को बनाने के लिये रेशमी कीडे़ को उबलते हुये पानी में डाला जाता है और उस कीड़े की मौत हो जाती है, उसके बाद ही रेशम मिलता हैं उसी रेशम से कपड़े भी बनते हैं । लेकिन फिर भी पूजन में रेशमी वस्त्र पहनकर बैठने का विधान हैं ।
5- काक विष्टा- कौए का मल- कौवा पीपल पेड़ों के फल खाता है और उन फलों के बीज अपनी विष्टा में इधर उधर छोड़ देता है, जिस कारण अधिकर पेड़ पौधे यहां वहां उग जाते है, अक्सर देखने में आता की पीपल के पेड़ अपने आप बहुत कम ही उगते है लेकिन पीपल काक विष्टा से ही उगता है, फिर भी पवित्र है, पूजा जाता हैं ।