पितृ पक्ष के सोलह दिन कुल परिवार के सभी दिवंगत पितर सूक्ष्म रूप में धरती पर आते हैं और अपेक्षा करते है की उनके लिए आत्म तृप्ति के हेतू उनके वंशज तर्पण या पिंडदान आदि कर्म करें जिसे ग्रहण कर वे तृप्त हो सके।
ये होते हैं हमारे पितर
हमारे कुल परिवार के ऐसे सदस्य जो अब जीवित नहीं है, दिवंगत हो गये, चाहे वे बुजुर्ग, बच्चे, महिला या पुरुष, विवाहित या अविवाहित थे जो अब शशरीर हमारे बीच नहीं हैं, वे सब पितर कहे जाते हैं। मान्यता है कि अगर हमारे पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति प्राप्त है तो उनके बच्चों के घर परिवार में भी सुख शांति बनी रहती है, साथ ही हमारे दिवंगत पितर बिगड़ते कामों को बनाने में सुक्ष्म रूप से हमारी मदद भी करते हैं। इसलिए पितृपक्ष में तो हमे अपने पितरों को याद करना चाहिए और उनके निमित्त तर्पण, पिण्डदान से कर्म करना ही चाहिए।
अगर आप पितृ पक्ष में श्राद्ध करने वाले हैं तो, इन 10 बातों का पालन करना नहीं भूले, नहीं तो..
पितृपक्ष तिथि को ऐसे समझें
धर्म शास्त्र पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पहला श्राद्ध किया जाता है, लेकिन भाद्रपद पूर्णिमा को भी उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है जिन्होंने किसी भी माह की पूर्णिमा तिथि के दिन शरीर छोड़ा हो। अगर किसी कारण भाद्रपद पूर्णिमा को श्राद्ध नहीं कर सके तो फिर आश्विन मास सर्व पितृमोक्ष अमावस्या के दिन भी किया जा सकता है।
अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह 6 से 10 बजे के बीच जप लें ये गणेश शाबर मंत्र, जो चाहोगे मिलेगा
सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन इनका श्राद्ध करें
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी एवं अंग्रेजी कैलेंडर के कारण कई लोगों को तिथि ही याद नहीं रहती और ऐसे लोग अपने पूर्वजों की पुण्यतिथि तक को भूल जाते हैं । ऐसी स्थिति के लिए शास्त्रों में यह विधान दिया गया है कि यदि किसी को अपने पितरों, पूर्वजों के निधन की तिथि मालूम नहीं हो तो वे लोग आश्विन अमावस्या तिथि जिसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है, उस दिन तर्पण, पिंडदान आदि श्राद्ध कर्म करने से भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं।
*************