पीपल वृक्ष को देव वृक्ष भी कहा जाता हैं, क्योंकि इसमें भगवान विष्णु जी वास करते हैं ऐसी मान्यता हैं, साथ ही ऐसा भी कहा जाता हैं की पित्रों का निवास स्थान भी इसी पर होता है, और वहीं से श्राद्ध की तिथियों के अनुसार अपने परिजनों के पास सुक्ष्म रूप से जाते हैं, और पितरों के निमित्त निकाले गए अन्न को ग्रहण करके प्राणवायु के रूप में पीपल पर लौट आते हैं । इसलिए कहा जाता हैं कि अपने पित्रों की याद में किसी मंदिर या अन्यत्र कही पवित्र स्थान पर पीपल का पेड़ लगाना चाहिए, क्योंकि पीपल वृक्षों की आयु सैकड़ों वर्षों की होती है, इसलिए इस पेड़ को लगाने से पितरों का आशीर्वाद भी चिरकाल तक अपनी संतोनों और संतानों की संतानों को मिलते रहता हैं जिससे वे जीवन में फलते फूलते हैं ।
शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया हैं कि पितृपक्ष में पीपल, बरगद का पौधा लगाने से पितर अति प्रसन्न होकर संतानों की हर इच्छाएं पूरी करते हैं, और अगर ‘मृत्यु के बाद के सभी क्रियाकर्म पीपल वृक्ष के नीचे किये जाते है तो उन्हें मोक्ष मिल ही जाता है । अगर तर्पण में तुलसी का प्रयोग किया जाता है कि इससे पितृ संतुष्ट हो जाते हैं । शास्त्रों में वृक्षों के अनुसार ग्रहों का प्रभाव रहता है । इसलिए ग्रहों के अनुसार उस वृक्ष की लकड़ी से पूजन करने से पितरों का आशीर्वाद जल्दी मिलता है ।
ग्रहों के अनुसार वृक्ष इस प्रकार हैं- मदार में सूर्य, पलाश में चंद्रमा, खैर में शनि, चिचड़ा में बुध, पीपल में बृहस्पति, गूलर में शुक्र, दूब में राहु और कुश में केतु का प्रभाव होता है । मनुष्यों की तरह पेड़-पौधों में भी जीव का वास होता है, इसलिए तो देहत्याग के बाद पीपल के पेड़ पर पितरों को जल देने के लिए घंट बांधते हैं ।
शास्त्रोंक्त ऐसा विधान है कि पितृपक्ष में पितरों को पिंडदान के बाद एक पौधा पीपल, बरगद या आम का पौधा जरूर लगाना चाहिए, क्योंकि जब उस पौध को लगाने के बाद जब जल दिया जाता हैं तो वह जल पितरों को मिलता है, और उसे ग्रहण कर वे तृप्त हो जाते हैं । इसलिए तो शास्त्रों में एक वृक्ष दस पुत्र के समान माना गया है ।