सास और बहू के नाम से जानी जाती हैं ये नदियां
गढ़वाल क्षेत्र में भागीरथी नदी को सास और अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है । पंचप्रयाग यह अलकनंदा और भागीरथी दोनों नदियों के संगम पर स्थित है । इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को गंगा के नाम से जाना जाता है । भागीरथी के कोलाहल भरे आगमन और अलकनंदा के शांत रूप को देखकर ही इन्हें सास-बहू की उपाधि प्राप्त है ।
यहां देवर्षि नारद जी ने की थी तपस्या
पंचप्रयाग बद्रीनाथ से होकर आने वाली मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों के संगम पर स्थित है । ऐसा माना जाता है कि यहीं पर ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद ने हजारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान शंकर का साक्षात्कार कर सांगोपांग गंधर्व शास्त्र प्राप्त किया था, और यहीं पर नारदजी को ‘महती’ नाम की वीणा भी शिवजी ने प्रदान की थी ।
दानवीर कर्ण को भी मिला था वरदान
महाभारत के योद्धा दानवीर कर्ण ने भी यहां तप किया था, उनकी स्थली होने के कारण ही इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा । यही वह पौराणिक स्थल है जहां कर्ण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान श्री सूर्य ने कर्ण को अभेद्य कवच, कुंडल और अक्षय धनुष वरदान में दिये थे ।
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