धर्म-कर्म

Nirjala Ekadashi 2024: विशेष क्यों है निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी नाम कैसे पड़ा, जानें कब रखें व्रत और क्या है पारण का नियम

Nirjala Ekadashi 2024: ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सबसे कठिन व्रत माना जाता है। यह भीषण गर्मी का महीना होता है और ज्यादातर भक्त जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते। इसी कारण सिर्फ इस एकादशी व्रत से साल की सभी 24 व्रत का फल मिल जाता है। आइये जानते हैं कब है निर्जला एकादशी और इसे भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं और पारण नियम क्या है (Why Nirjala Ekadashi called Bhimaseni Ekadashi) …

भोपालJun 16, 2024 / 07:33 pm

Pravin Pandey

निर्जला एकादशी डेट 2024, जानें कब रखें व्रत और पारण का क्या है नियम

सबसे महत्वपूर्ण है निर्जला एकादशी

साल में चौबीस एकादशी पड़ती हैं, जबकि अधिक मास में इसकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। उपवास के कठोर नियमों के कारण इनमें सबसे महत्वपूर्ण है ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी व्रत, जिसमें भक्त न अन्न ग्रहण करते हैं और न भीषण गर्मी में जल ग्रहण करते हैं। इसलिए इस एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रायः मई या जून महीने में गंगा दशहरा के अगले दिन पड़ती है। हालांकि कभी कभार गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी एक ही दिन पड़ जाती है। बहरहाल, मान्यता है कि जो श्रद्धालु साल की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में समर्थ न हों, उन्हें सिर्फ निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए। इससे दूसरी सभी एकादशियों का पुण्यफल मिल जाता है।

निर्जला एकादशी को क्यों कहते हैं भीमसेनी एकादशी

पौराणिक कथा के अनुसार पांडवों में दूसरे बड़े भाई भीमसेन के लिए अपनी भूख को नियंत्रित करना काफी मुश्किल था। इस कारण वो एकादशी व्रत नहीं कर पाते थे। जबकि भीम के अलावा द्रौपदी समेत बाकी पांडव हर एकादशी व्रत को रखते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान थे। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहे हैं। इस दुविधा से उबरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गए, यहां महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत रखने की सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी, भीम एकादशी और पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
ये भी पढ़ेंः Gayatri Chalisa: गायत्री चालीसा बगैर पूरी नहीं होती गायत्री जयंती पूजा, माता आसानी से होती हैं प्रसन्न

कब है निर्जला एकादशी

निर्जला एकादशी: मंगलवार, 18 जून 2024
ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि प्रारंभः 17 जून 2024 को सुबह 04:43 बजे से
एकादशी तिथि समापनः मंगलवार 18 जून 2024 को सुब 06:24 बजे तक
एकादशी व्रत पारण (व्रत तोड़ने का) समयः बुधवार 19 जून सुबह 05:35 बजे से सुबह 07:28 बजे तक
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समयः बुधवार, सुबह 07:28 बजे तक

पारण का क्या हो समय

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी व्रत को पूरा करने को पारण कहते हैं। इसे एकादशी व्रत के अगले दिन प्रातः काल, सूर्योदय के बाद किया जाता है। लेकिन एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि खत्म होने से पहले करना जरूरी है। क्योंकि द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान माना जाता है। इसके अलावा एकादशी व्रत का पारण हरि वासर (यानी द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि) में भी नहीं किया जाता है। वहीं व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से भी बचना चाहिए। ऐसे में मध्याह्न बीतने का इंतजार करना चाहिए।
ये भी पढ़ेंः Gayatri Jayanti: गायत्री पूजा से पूरी होती है सभी मनोकामना, जयंती पर जानें माता का स्वरूप, पूजा विधि और मंत्र

एकादशी व्रत और पारण का नियम

कभी-कभार एकादशी दो दिन पड़ता है। ऐसे में स्मार्त और गृहस्थों को पहले दिन यानी वैष्णव एकादशी व्रत करना चाहिए। दूसरे दिन यानी दूजी एकादशी को संन्यासी, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को व्रत करने का विधान है। हालांकि जो समर्थ हों वो दोनों दिन व्रत रख सकते हैं। इसके अलावा वैष्णव उपासक द्वादशी से मिली हुई एकादशी का व्रत रखते हैं और त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण कर लें। जबकि शैव दशमी से लगी एकादशी पर भी व्रत कर लेते हैं।

संबंधित विषय:

Hindi News / Astrology and Spirituality / Dharma Karma / Nirjala Ekadashi 2024: विशेष क्यों है निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी नाम कैसे पड़ा, जानें कब रखें व्रत और क्या है पारण का नियम

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.