1- मूल संज्ञक नक्षत्र- अश्विनी, अश्लेषा, मघा, जयेष्ठा, मूल, रेवती आदि नक्षत्रों की संज्ञा मूल कहलाती है।
बड़े मूल- अश्लेषा, जयेष्ठा, मूल एवं मघा आदि।
छोटे मूल – अश्विनी, रेवती
2- अभुक्त मूल – देवर्षि नारद जी के अनुसार, ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्य अन्त्य की 1 घटी मूल नक्षत्र के आदि की 4 घटी।
– ऋषि वशिष्ठ के अनुसार, ज्येष्ठा के अन्त्य की 1 घटी एवं मूल के आदि की 2 घटी।
– अन्य आचार्यों के अनुसार, ज्येष्ठा के अन्त्य की 5 घटी एवं मूल के आदि की 8 घटी अभुक्त मूल है।
– अभुक्त व मूल संज्ञक नक्षत्र में उत्पन्न बालक का मुख पिता को 8 साल या 6 माह तक नहीं देखना चाहिए। समयानुसार 27वें दिन जन्म-नक्षत्र में मूल शांति व बालक का छायादान कराकर मुख देखने में को दोष नहीं है।
3- मूल का निवास – वैशाख, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष, फाल्गुन मास तथा 1, 4, 7 एवं 10 जन्म लग्नों में पाताल में। चैत्र, श्रावण, कार्तिक, पौष मास एवं 3, 6, 9, 12 जन्म लग्नों में भूमि पर। आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन और माघ मास व 2, 5, 8, 11 जन्म लग्नों में मूल का वास स्वर्ग में रहता है।
4- मूल निवास फलम् – पाताल में धनागम। भूमि पर – कूल नाशकारक। स्वर्ग में – शुभफलकारक होता है।
मूल नक्षत्रों के वेदोक्त मंत्र
अश्विनी नक्षत्र मूल मंत्र
ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम वाचेन्द्रो
बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम। ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम:।
अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।
ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।
ॐ सर्पेभ्यो नम:।
भगवान परशुराम जयंती अप्रैल में इस दिन मनाई जाएंगीमघा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:।
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न पितरोSमीमदन्त:
पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म। ॐ पितरेभ्ये नम:।
ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र:। ॐ इन्द्राय नम:।
मूल नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त।
ॐ निॠतये नम:।
रेवती नक्षत्र वेद मंत्र
ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन।
स्तोतारस्तेइहस्मसि। ॐ पूषणे नम:।
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