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कुल इतने मूल नक्षत्र होते हैं, जानें इनके वेदोक्त लाभकारी मंत्र

मूल नक्षत्र और उनके मंत्र

Apr 11, 2020 / 05:43 pm

Shyam

कुल इतने मूल नक्षत्र होते हैं, जानें इनके वेदोक्त लाभकारी मंत्र

कुल इतने मूल नक्षत्र होते हैं, जानें इनके वेदोक्त लाभकारी मंत्र

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले बच्चों को उनके पिता को कुल इतने दिनों तक नहीं देखना चाहिए। अगर देखना हो तो मूल की शांति विधि-विधान से करने के बाद संतान को देखने से कोई दोष नहीं लगता। जानें मूल नक्षत्रों की जानकारी एवं उनके वेदोक्त मंत्र के बारे में।

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1- मूल संज्ञक नक्षत्र- अश्विनी, अश्लेषा, मघा, जयेष्ठा, मूल, रेवती आदि नक्षत्रों की संज्ञा मूल कहलाती है।

बड़े मूल- अश्लेषा, जयेष्ठा, मूल एवं मघा आदि।

छोटे मूल – अश्विनी, रेवती

2- अभुक्त मूल – देवर्षि नारद जी के अनुसार, ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्य अन्त्य की 1 घटी मूल नक्षत्र के आदि की 4 घटी।

– ऋषि वशिष्ठ के अनुसार, ज्येष्ठा के अन्त्य की 1 घटी एवं मूल के आदि की 2 घटी।

– अन्य आचार्यों के अनुसार, ज्येष्ठा के अन्त्य की 5 घटी एवं मूल के आदि की 8 घटी अभुक्त मूल है।

– अभुक्त व मूल संज्ञक नक्षत्र में उत्पन्न बालक का मुख पिता को 8 साल या 6 माह तक नहीं देखना चाहिए। समयानुसार 27वें दिन जन्म-नक्षत्र में मूल शांति व बालक का छायादान कराकर मुख देखने में को दोष नहीं है।

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3- मूल का निवास – वैशाख, ज्येष्ठ, मार्गशीर्ष, फाल्गुन मास तथा 1, 4, 7 एवं 10 जन्म लग्नों में पाताल में। चैत्र, श्रावण, कार्तिक, पौष मास एवं 3, 6, 9, 12 जन्म लग्नों में भूमि पर। आषाढ़, भाद्रपद, आश्विन और माघ मास व 2, 5, 8, 11 जन्म लग्नों में मूल का वास स्वर्ग में रहता है।

4- मूल निवास फलम् – पाताल में धनागम। भूमि पर – कूल नाशकारक। स्वर्ग में – शुभफलकारक होता है।

मूल नक्षत्रों के वेदोक्त मंत्र

अश्विनी नक्षत्र मूल मंत्र

ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम वाचेन्द्रो

बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम। ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम:।

अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।

ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम:।

ॐ सर्पेभ्यो नम:।

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मघा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम:।

प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न पितरोSमीमदन्त:

पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म। ॐ पितरेभ्ये नम:।

ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं

पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र:। ॐ इन्द्राय नम:।

मूल नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां

विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त।

ॐ निॠतये नम:।

रेवती नक्षत्र वेद मंत्र

ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन।

स्तोतारस्तेइहस्मसि। ॐ पूषणे नम:।

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