मणिकर्णिका श्मशान घाट को अतिप्राचीन बताया जाता है, कहा जाता है कि भूतभावन भगवान शिवजी इस स्थान पर अपने औघढ़ स्वरूप में सैदव निवास करते हैं । इस श्मशाम में चिता की आग कभी ठंडी नही होती । यहां अंतिम क्रिया के बाद मृतक को सीधा मोक्ष प्राप्त होता है । यहां शिवजी एवं मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर है ।
यहीं गिरा था माता सती का कुंडल
हिन्दू शास्त्रों में एक कथा आती हैं कि जब दक्ष के यज्ञ की अग्नि में माता सती ने अपनी देह को समर्पित कर दिया था, तब आहत शिवजी ने उनके मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर ब्रह्माण्ड में घूमने लगे तो, तभी भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन से खंड-खंड कर दिया । जिसके बाद 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ । कहा जाता हैं कि वाराणसी के इस घाट पर माता सती के कान का कुंडल गिरा था, इसीलिए इस स्थान को मणिकर्णिका कहा जाता हैं ।
इस समय करना चाहिए स्नान
कहा जाता हैं कि मणिकर्णिका घाट पर सबसे पहले स्वयं भगवान विष्णु जी ने स्नान किया था । यहां बैकुण्ठ चौदस की रात्रि के तीसरे प्रहर में स्नान करने से मुक्ति मिल जाती हैं । इस दिन यानी की कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि के दिन यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त स्नान करने आते हैं ।